लंबी उम्र के लिए जिम्मेदार ‘प्रोटीन’ की पहचान करेगा एम्स
-शोध में माता-पिता, दादा-दादी, परदादा और किशोर सदस्य वाले 40 परिवारों को किया जाएगा शामिल

नई दिल्ली, 17 मई : मानव शरीर का निर्माण सेल से हुआ है और सेल प्रोटीन से बनते हैं। ऐसे ही अनेक प्रोटीन शरीर की शक्ति, ऊर्जा और कार्य क्षमता में वृद्धि करते हैं। हालांकि, यह प्रोटीन सभी व्यक्तियों के शरीर में पाए जाते हैं और उनकी उम्र को लंबी या छोटी अवधि में तब्दील करते हैं। लेकिन उस प्रोटीन की सटीक पहचान अब तक नहीं हो सकी है जो व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है।
एम्स दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन एजिंग के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ प्रसून चटर्जी ने कहा, हाल के वर्षों में दीर्घायु और उम्र बढ़ने से संबंधित चर्चाएं पहले की तुलना में ज्यादा होने लगी हैं क्योंकि दुनिया भर के शोधकर्ता लंबे, स्वस्थ जीवन के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को समझने की खोज ने गति पकड़ ली है, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से नवीन शोधों का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इसी कड़ी में एम्स के जरा चिकित्सा विभाग ने लोंगेविटी प्रोजेक्ट के तहत एक शोध करने का फैसला किया है। इस शोध में विभिन्न पृष्ठभूमि और आयु समूहों के 40 परिवारों के सदस्यों को शामिल किया जाएगा। शोध में यह जानने का प्रयास किया जाएगा आखिर एक परिवार के अंदर उम्र बढ़ने का पैटर्न और बायोमार्कर (जैव सूचक) क्या होता है।
डॉ चटर्जी ने कहा, हम लोंगेविटी प्रोजेक्ट के लिए ऐसे परिवारों की तलाश कर रहे हैं जिनमें किशोर (10-19), माता-पिता और मध्यम आयु वर्ग के वयस्क (40-59), दादा-दादी (60-79) और यहां तक कि परदादा (80+) सहित सभी उम्र के सदस्य हों। यह शोध 36 महीने तक जारी रहेगा जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान की ओर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। उन्होंने कहा, व्यक्ति के शरीर में प्रोटीन की बड़ी भूमिका है। जिसके चलते 40 वर्ष का व्यक्ति 20 वर्ष का और 60 वर्ष का व्यक्ति 40 वर्ष का दिखाई देता है। वहीं कई मामलों में 40 वर्ष का व्यक्ति 60 वर्ष का और 20 वर्ष का व्यक्ति 40 वर्ष का दिखता है। लेकिन इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण अब तक सामने नहीं आया है। इस कारण की पहचान होने पर व्यक्ति की उम्र को लंबा किया जा सकेगा।
जरा चिकित्सा विभाग की वैज्ञानिक डॉ. राशि जैन ने बताया कि बुजुर्गों को स्वस्थ, कमजोर और बहुत कमजोर जैसी तीन श्रेणियों में बांटा जाएगा। इसके लिए शोधकर्ता उन जीन, शरीर के अंदरूनी कामकाज और वातावरण से जुड़े संकेतों (बायोमार्कर पैनल) का इस्तेमाल करेंगे, फिर, कम से कम 10 साल तक इन समूहों पर नजर रखी जाएगी। इस दौरान देखा जाएगा कि उन्हें कितनी बार अस्पताल जाना पड़ा, उनकी दैनिक क्रियाकलापों में कितनी कमी आई और उनकी मृत्यु दर क्या रही। साथ ही, उनके शरीर की जैविक घड़ी (उम्र मापने का एक नया टेस्ट) को भी जांचा जाएगा।
यह शोध जेनेटिक, शारीरिक और पर्यावरणीय कारकों का विश्लेषण करके उम्र बढ़ने के मैकेनिज्म की गहराई से जांच करने के लिए डिजाइन किया गया है। शोध में भाग लेने वालों को संज्ञानात्मक, कार्यात्मक और पोषण संबंधी आकलन के साथ-साथ उन्नत रक्त-आधारित मूल्यांकन की एक श्रृंखला से गुजरना होगा जो उन्हें अपने वर्तमान और भविष्य के स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा। सभी प्रतिभागियों की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए कठोर उपाय लागू किए जाएंगे।