भारत

नई दिल्ली : महिलाओं व पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डाल रही माइक्रो प्लास्टिक

नई दिल्ली: -हवा, भोजन, पानी के जरिये मानव शरीर में पहुंच रहे खतरनाक केमिकल और हैवी मेटल्स

नई दिल्ली, 19 दिसम्बर : प्लास्टिक प्रदूषण हमारे इकोसिस्टम और सेहत को भारी नुकसान पहुंचा रहा है जिसके चलते महिलाओं व पुरुषों की प्रजनन क्षमता के साथ उनका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।

यही नहीं मानव शरीर की पिट्यूटरी ग्लैंड से लेकर याददाश्त और सोचने समझने की क्षमता तक प्रभावित हो रही है। यह जानकारी जेजेएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी ऊटी में ‘स्वास्थ्य पर माइक्रो प्लास्टिक का प्रभाव’ विषय पर आयोजित परिचर्चा के दौरान सामने आई है। परिचर्चा में शामिल एम्स दिल्ली के एनाटोमी विभाग की प्रोफेसर डॉ रीमा दादा ने वीरवार को बताया, माइक्रो प्लास्टिक को लेकर लैब में मछलियों, पशुओं और पक्षियों पर किए गए शोध से पता चला है कि माइक्रो प्लास्टिक प्राणियों की सेहत को भारी नुकसान पहुंचा रही है। इस अवसर पर न्यू कैसल ऑस्ट्रेलिया के डॉ थावा पलानीसामी और डॉ के गौतमराजन भी मौजूद रहे।

इसके असर के चलते पुरुषों के स्पर्म की संख्या कम हो रही है और वे कमजोर भी हो रहे हैं। इसके अलावा पुरुषों में पाया जाने वाला टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर भी घट रहा है। वहीं, महिलाओं के प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। उनके गर्भाशय में ओवरियन रिजर्व की संख्या कम हो रही है जिसके चलते संतान उत्पत्ति की संभावनाएं कम हो रही है। डॉ दादा ने बताया कि माइक्रो प्लास्टिक के कारण ब्रेन बैरियर ब्रीच यानि व्यक्ति के मस्तिष्क के चारों ओर बना सुरक्षात्मक अवरोध टूट जाता है जिससे हानिकारक पदार्थ मस्तिष्क के ऊतकों में प्रवेश कर जाते हैं।

वहीं, ब्लड बैरियर ब्रीच या रक्त-मस्तिष्क अवरोध के कारण कोशिकाओं की एक विशेष परत प्रभावित होती है जो रक्त प्रवाह से हानिकारक पदार्थों को छानकर मस्तिष्क की रक्षा करने में अक्षम हो जाती है। इन अवांछित पदार्थों के मस्तिष्क में प्रवेश करने से संभावित रूप से तंत्रिका संबंधी क्षति हो सकती है। माइक्रो प्लास्टिक अल्जाइमर और पार्किंसन जैसे रोगों से भी जुड़ा है। जिससे याददाश्त कमजोर होने और सोचने -समझने की क्षमता में कमी आने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा यह थाइरॉइड और पिट्यूटरी ग्लैंड को भी नुकसान पहुंचाता है।

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक ?
यह शरीर में सांस लेने या अंतर्ग्रहण के जरिए प्रवेश करता है। माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं जिनकी लंबाई 5 मिलीमीटर से भी कम होती है। ये आसानी से खत्म नहीं होते और खुली आंखों से दिखाई नहीं देते। हालांकि,यूवी लाइट की मदद से हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक को देखा जा सकता है। घर के अंदर माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा ज्यादा होती है। माइक्रोप्लास्टिक के शरीर में प्रवेश करने से सूजन, जीनो टॉक्सिसिटी, ऑक्सीडेटिव तनाव, एपोप्टोसिस, नेक्रोसिस जैसे सेहत के दुष्प्रभाव होते हैं।

शरीर में कैसे जाता है माइक्रो प्लास्टिक ?
प्लास्टिक जलाने पर भारी मात्रा में केमिकल निकलते हैं जो सांस लेने पर शरीर में प्रवेश करते हैं और श्वसन प्रक्रिया पर बुरा असर डालते हैं। प्लास्टिक के प्रतिकूल प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चों और छोटे बच्चों पर ज्यादा गंभीर होते हैं। इसके चलते बच्चे का समय से पहले जन्म, मृत अवस्था में जन्म, प्रजनन अंगों में जन्मजात दोष आदि भी हो सकते हैं। प्लास्टिक के बर्तन में भोजन व पानी का सेवन करने से भी माइक्रो प्लास्टिक शरीर में प्रवेश कर सकता है।

पिट्यूटरी ग्लैंड?
मस्तिष्क में पिट्यूटरी ग्रंथि कॉर्टिसोल उत्पादन को नियंत्रित करती है। कॉर्टिसोल तनाव प्रतिक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वास्थ्य के लिए कॉर्टिसोल का पर्याप्त संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

मलाइका अरोड़ा ने अर्जुन कपूर के साथ ब्रेकअप की खबरों के बीच अपनी इंस्टाग्राम स्टोरीज पर एक रहस्यमयी पोस्ट शेयर की, कहा ‘हममें से हर किसी के पास सिर्फ़…’

Related Articles

Back to top button