
New Delhi (मिताली चंदोला, एडिटर, स्पेशल प्रोजेक्ट्स) : “चीट करो, पर कम से कम दिमाग से…” — ये बात Deloitte शायद भूल गई थी।
नतीजा? शर्मनाक फेलियर, सरकारी रिफंड और दुनियाभर में किरकिरी।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने Deloitte से $440,000 (करीब ₹3.6 करोड़) वापस लिए — क्योंकि कंपनी ने सरकारी प्रोजेक्ट के लिए जो रिपोर्ट दी, वह ChatGPT से तैयार की गई थी!
AI ने ड्राफ्ट बनाया, इंसानों ने बस कॉपी-पेस्ट किया — बिना जांच, बिना सोच। और जब सरकार ने रिपोर्ट चेक की, तो उसमें गलत डेटा, अधूरे संदर्भ और फर्जी विश्लेषण मिले।
यानी, तकनीक पर अंधा भरोसा — और इंसानी सोच पर शॉर्टकट!
परिणाम वही निकला — प्रोजेक्ट डूबा, क्लाइंट नाराज़, और टीम पर छंटनी का खतरा।
अब सवाल बड़ा है —
गलती AI की है, कंपनी की, या हमारी जो सोचना छोड़ चुके हैं?
आज हम हर सवाल का जवाब “तुरंत” चाहते हैं —
Google कम, दिमाग और भी कम।
ChatGPT से झटपट उत्तर मिल जाए, बस वही काफी है।
लेकिन ये घटना याद दिलाती है —
AI आपकी मदद कर सकता है, सोच नहीं सकता।
डेटा देगा, दिशा नहीं।
तकनीक जितनी शक्तिशाली है, उतनी खतरनाक भी — अगर उसे बिना समझ के इस्तेमाल किया जाए।
Deloitte का यह केस सिर्फ एक कंपनी की गलती नहीं, बल्कि एक चेतावनी है —
अगर हमने मशीनों को सोचने दिया और खुद सिर्फ बटन दबाने वाले बन गए,
तो कल की गलती सिर्फ AI की नहीं, हमारी मूर्खता की होगी।
सोचिए — जब सोचने की जिम्मेदारी भी ChatGPT को दे दी, तो इंसान की पहचान क्या बचेगी?