
Malegaon Blast Case: मालेगांव ब्लास्ट केस में भगवा आतंकवाद की थ्योरी साबित हुई फर्जी, NIA कोर्ट ने सभी 7 आरोपी किए बरी
महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके के 18 साल बाद एनआईए की विशेष अदालत ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए यह स्पष्ट किया कि ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी महज एक झूठा नैरेटिव थी, जिसे मुकदमे के दौरान प्रमाणित नहीं किया जा सका। इस मामले में जिन प्रमुख आरोपियों को बरी किया गया, उनमें तत्कालीन भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के नाम शामिल हैं। अन्य आरोपियों में सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी, अजयराहिरकर, रमजी कालसांगरा और एक अन्य शामिल थे। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि बम विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी या कि आरडीएक्स लाने व बम बनाने में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की कोई भूमिका थी।
धमाका उस वक्त हुआ था जब रमजान का महीना चल रहा था और नवरात्रि शुरू होने ही वाली थी। इस आतंकी हमले में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस द्वारा की गई थी, लेकिन वर्ष 2011 में यह जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी। करीब एक दशक तक चले मुकदमे में अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों को कोर्ट में पेश किया, लेकिन उनमें से 34 गवाह अपने पहले दिए गए बयान से मुकर गए। यही नहीं, कई अहम तकनीकी सबूत भी अदालत में टिक नहीं पाए। एनआईए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने फैसले में जांच में हुई कई खामियों और असंगतियों को रेखांकित किया और कहा कि आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए।