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Gangster Act Case: गैंगस्टर एक्ट में तीनों आरोपी बरी, साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने दिया संदेह का लाभ

Gangster Act Case: गैंगस्टर एक्ट में तीनों आरोपी बरी, साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने दिया संदेह का लाभ

नोएडा में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज एक महत्वपूर्ण मामले में अदालत ने तीनों आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया है। विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर एक्ट) एवं अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश तृतीय संजय कुमार सिंह की अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए मुजफ्फरनगर के नीरज, अजय उर्फ अंजय और इटावा के जयराम उर्फ भोला उर्फ आशीष को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपों को प्रमाणित करने में विफल रहा।

अभियोजन के अनुसार, तीनों आरोपी एक संगठित गिरोह बनाकर वाहन चोरी और अन्य आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त थे। इनके खिलाफ गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद में चोरी व आर्म्स एक्ट के तहत कई मुकदमे दर्ज थे। पुलिस का दावा था कि ये आरोपी लगातार क्षेत्र में वाहन चोरी की घटनाओं को अंजाम देते रहे हैं और अपने आर्थिक लाभ के लिए संगठित रूप से अपराध करते थे।

मामले में अधिवक्ता नहीं होने के कारण तीनों आरोपियों ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के अधीन आने वाले लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम (LADCS) से निशुल्क कानूनी सहायता मांगी थी। डिप्टी चीफ जितेंद्र कुमार बैसोया ने अदालत में उनकी ओर से पैरवी की।

साक्ष्यों की कमी पर अदालत ने जताई नाराजगी
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केवल गैंगचार्ट में दर्ज मामलों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अभियोजन को यह साबित करना आवश्यक है कि आरोपियों ने लोक व्यवस्था को भंग करने या अपने आर्थिक लाभ के लिए संगठित अपराध किया हो। अदालत ने पाया कि जिन मुकदमों का उल्लेख गैंगचार्ट में किया गया है, उनमें से किसी में भी दोषसिद्धि नहीं हुई है।

लोक व्यवस्था भंग का प्रमाण नहीं मिला
अदालत ने कहा कि अभियोजन इस बात को साबित करने में असफल रहा कि तीनों ने वास्तव में लोक व्यवस्था भंग करने के उद्देश्य से कोई गिरोह बनाया था। अभियोजन के दावों में ठोस साक्ष्य की कमी रही और आरोपों का समर्थन करने वाला कोई प्रत्यक्ष प्रमाण अदालत में प्रस्तुत नहीं किया जा सका।

अदालत का निर्णय
न्यायालय ने सभी पहलुओं की समीक्षा करने के बाद कहा कि मात्र संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस आधार पर तीनों आरोपियों — नीरज, अजय और जयराम — को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह फैसला न्यायपालिका की उस नीति को दर्शाता है जिसमें बिना ठोस सबूत किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता। यह मामला भविष्य में गैंगस्टर एक्ट से जुड़े अन्य मामलों के लिए एक मिसाल बन सकता है।

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