Parijat Puraskar Sandhya: पारिजात पुरस्कार संध्या में कला, संगीत और अध्यात्म का अद्भुत संगम

Parijat Puraskar Sandhya: पारिजात पुरस्कार संध्या में कला, संगीत और अध्यात्म का अद्भुत संगम
रिपोर्ट: अजीत कुमार
नई दिल्ली के लाजपत भवन सभागार में कला कल्प सांस्कृतिक संस्थान द्वारा पारिजात पुरस्कार संध्या का भव्य आयोजन किया गया। संस्थान की महोत्सव निदेशक डॉ. अतासी मिश्रा और उपाध्यक्ष मोहित माधव के नेतृत्व में आयोजित इस संध्या ने भारतीय कला, संगीत, नृत्य और अध्यात्म का अनूठा संगम प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई और इसके बाद शास्त्रीय कलाओं की श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संस्थान के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत ओडिसी समूह नृत्य ने मूर्तिकला जैसी भाव-भंगिमाओं का सजीव चित्रण किया। इप्शिता गांगुली के कथक में लय और सौंदर्य का अनूठा संतुलन दिखाई दिया। विष्णुप्रिया मरार ने मोहिनीअट्टम के माध्यम से काव्यात्मक सौंदर्य को जीवंत किया। याना सुरेश के भरतनाट्यम ने भक्ति रस से भरे भावों की अविरल धारा प्रवाहित की।
लोहित सार्थक मोहंती और सिद्धेश गणेश की तबला-वायलिन की युगलबंदी ने सुर-लय की ऐसी जुगलबंदी रची कि सभागार तालियों से गूंज उठा। अंत में, माधव दुबे द्वारा प्रस्तुत भगवान कथा ने कला और अध्यात्म के बीच गहरे संबंध को भावपूर्ण तरीके से दर्शकों तक पहुंचाया। इस अवसर पर प्रमुख गणमान्य अतिथियों में सीसीआरटी के उपनिदेशक दिबाकर दास, महामंडलेश्वर राधा सरस्वती महाराज, ट्रिनिटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के अध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश टंडन और जर्मन दूतावास के सहकारिता प्रमुख गॉटफ्राइड शामिल हुए। उनकी उपस्थिति ने भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान को और सशक्त किया।
सांस्कृतिक संध्या का मुख्य आकर्षण आरोहण पुरस्कार समारोह रहा, जिसमें उन कलाकारों और सेवकों को सम्मानित किया गया जिन्होंने भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अपने संबोधन में डॉ. अतासी मिश्रा ने कहा कि संस्थान का उद्देश्य संगीत, नृत्य, योग और वैदिक ज्ञान के माध्यम से युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना है। वहीं, मोहित माधव ने कहा कि पारिजात पुरस्कार सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि परंपरा और भविष्य के बीच एक सेतु है।
कार्यक्रम का समापन दर्शकों की गगनभेदी तालियों के बीच हुआ, जिसने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि कला कल्प सांस्कृतिक संस्थान भारतीय विरासत के संरक्षण और प्रसार में एक सशक्त स्तंभ के रूप में स्थापित हो चुका है।