हेडगेवार में डॉक्टर संग मारपीट मामले में एफआईआर दर्ज
-कड़कड़डूमा स्थित अस्पताल में मरीज के तीमारदार ने जेआर के साथ की थी मारपीट
नई दिल्ली, 27 अगस्त : पूर्वी दिल्ली के हेडगेवार अस्पताल में जूनियर डॉक्टर संग ड्यूटी के दौरान मारपीट मामले में संस्थानिक एफआईआर करीब 18 घंटे बाद दर्ज हो गई है। मगर, अस्पताल के आरडीए सदस्य एफआईआर में देरी के लिए आक्रोश जता रहे हैं और चिकित्सा निदेशक की लापरवाही को देरी की प्रमुख वजह बता रहे हैं।
आरडीए का कहना है कि भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय के साथ दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय भी तमाम चिकित्सा संस्थानों को छह घंटे के भीतर संस्थानिक प्राथमिकी दर्ज कराने के निर्देश दे चुके हैं। फिर भी एफआईआर दर्ज कराने में 18 घंटे क्यों लगे। दरअसल, कोलकाता रेप व मर्डर मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि कार्यस्थल पर डॉक्टरों की सुरक्षा जरूरी है। अगर डॉक्टर के साथ किसी अस्पताल में मारपीट होती है तो अस्पताल प्रशासन को 2 घंटे के अंदर आरोपी के खिलाफ संस्थानिक एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन संस्थानिक एफआईआर दर्ज कराने से बचते हुए नजर आ रहे हैं।
डॉक्टर क्यों चाहते हैं संस्थानिक एफआईआर ?
संस्थानिक एफआईआर का नियम 10 वर्ष पूर्व दिल्ली क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के माध्यम से लाया गया था। इसके तहत जब कार्यस्थल पर डॉक्टरों के साथ हिंसा या अस्पताल में तोड़फोड़ की स्थिति सामने आती है तो अस्पताल को आरोपी के खिलाफ संस्थानिक एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार होता है। इस तरह की एफआईआर में आरोपी को जल्दी जमानत नहीं मिलती है। पुलिस को उसे गिरफ्तार करना होता है। इस मुकदमे के लिए वकील के चुनाव से लेकर उसकी फीस भुगतान और अन्य जरूरी कार्रवाई चिकित्सा संस्थान के प्रमुख को करनी पड़ती है। साथ ही मुकदमे की सुनवाई के दौरान गवाह और सबूत भी उपलब्ध कराने होते हैं। जबकि व्यक्तिगत एफआईआर दर्ज होने पर यह सभी काम पीड़ित डॉक्टर को स्वयं करने पड़ते हैं।