नई दिल्ली, 8 सितम्बर : देश में किडनी और लिवर जैसे अंगों की विफलता के चलते अंग प्रत्यारोपण की मांग में लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन देश के सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित ट्रांसप्लांट सर्जनों की कमी के चलते गरीब व जरूरतमंद लोग ट्रांसप्लांट से वंचित रह जाते हैं।
ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए रविवार को एम्स दिल्ली में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वी के पॉल, डीजीएचएस डॉ अतुल गोयल, एम्स निदेशक डॉ एम श्रीनिवास और शल्य चिकित्सा विभाग के डॉ वी के बंसल के साथ डॉ आशीष शर्मा, डॉ असुरी कृष्णा और डॉ सरबप्रीत प्रमुख रूप से मौजूद रहे। इसका आयोजन इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन्स (आईएसटीएस) ने किया जो एम्स के सर्जिकल अनुशासन विभाग और पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास था।
इस अवसर पर डॉ वीके पॉल ने कहा, ट्रांसप्लांट सर्जन बनने के लिए तीन साल का प्रशिक्षण लिया जाना अनिवार्य है लेकिन इस नियम में बदलाव करने की जरुरत है ताकि अस्पतालों में प्रशिक्षित सर्जनों की संख्या बढ़ाई जा सके। इसके लिए सर्जन के अनुभव और क्षमता को तीन साल की अवधि में बांधने की जगह अंग प्रत्यारोपण करने की क्षमता को वरीयता देनी चाहिए। वहीं, डॉ वीके बंसल ने बताया कि भारत में विभिन्न कारणों से लोग किडनी और लिवर जैसे अंगों के खराब होने की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन अंगों की उपलब्धता और प्रशिक्षित ट्रांसप्लांट सर्जनों की कमी के चलते उन्हें अंग प्रत्यारोपण की सुविधा नहीं मिल पाती है।
नतीजतन उन्हें जीवनभर डायलिसिस पर निर्भर रहना पड़ता है या अपनी जान गंवानी पड़ जाती है। इसके लिए बड़े स्तर पर अंगदान की जरुरत है जिसे जनजागरूकता अभियान के जरिये बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा, फिलहाल देश में प्रतिवर्ष 18 हजार किडनी और 4 हजार लिवर ट्रांसप्लांट हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश निजी क्षेत्र के अस्पतालों में संपन्न हो रहे हैं जो काफी महंगे होते हैं। गरीब आदमी महंगे ट्रांसप्लांट प्रक्रिया को वहन नहीं कर पाते हैं। ऐसे में देश को बड़ी संख्या में प्रशिक्षित ट्रांसप्लांट सर्जनों की जरुरत है। इसके लिए कानून में सुधार की जरुरत है ताकि अधिकाधिक सर्जन तैयार किए जा सके।
3 से 6 महीने में नया पाठ्यक्रम
इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन्स (आईएसटीएस) ने कहा कि देश में प्रशिक्षित ट्रांसप्लांट सर्जनों की कमी दूर करने के लिए अगले तीन से छह महीने में नया पाठ्यक्रम लांच किया जाएगा जिसका लाभ डॉक्टरों के साथ गरीब मरीजों को भी मिल सकेगा। फिलहाल देश के करीब 612 चिकित्सा संस्थानों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा है जिनमें से महज 20 चिकित्सा संस्थान ही सरकार के तहत आते हैं बाकी सभी निजी क्षेत्र से संबंधित हैं।