नई दिल्ली, 12 नवम्बर : हड्डियों एवं दांतों के विकास और स्वास्थ्य के लिए फ्लोराइड जरुरी है लेकिन जब शरीर में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तब व्यक्ति फ्लोरोसिस से पीड़ित हो जाता है। नतीजतन, दांत खोखले और हड्डियां कमजोर होने लगते हैं। यहां तक कि हाथ व पैरों की हड्डियां टेढ़ी -मेढ़ी या जिगजैग आकार की हो जाती हैं।
यह जानकारी एम्स दिल्ली के क्लीनिकल इकोटॉक्सिकोलॉजी फैसिलिटी (सीईएफ) की ओर से इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर फ्लोराइड रिसर्च के 36वें सम्मेलन में मंगलवार को दी गई। इस दौरान एनाटोमी विभाग और सीईएफ के अध्यक्ष प्रो. ए. शरीफ ने बताया कि फ्लोराइड एक प्राकृतिक खनिज है जो कम मात्रा में होता है तो दांतों की सड़न रोकने में मदद करता है। वहीं, ज्यादा मात्रा में होता है तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाता है। यह (फ्लोराइड) भूमिगत जल के दो स्रोतों (कुएं और हैंडपंप) से मानव शरीर में पहुंचता है और 5 से 15 वर्षों में दांतों से लेकर शरीर की हड्डियों को खोखला कर देता है। जिसके चलते कई मामलों में व्यक्ति की हड्डी महज करवट बदलने (सोते समय) के दौरान ही टूट जाती है।
सीईएफ के सह संस्थापक डॉ जावेद अहसान कादरी ने बताया कि भूमिगत पानी में फ्लोराइड ज्यादा होने के कारण बच्चों में न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर पाया जा रहा है। जिससे बच्चों के दिमाग का विकास रुक जाता है। पाचन तंत्र में कमी आ जाती है। वहीं, गर्भवती महिला का अजन्मा बच्चा गर्भ में सामान्य दर से बढ़ नहीं पाता है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी भारत में बहुत आम है। आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भूजल में फ्लोराइड का स्तर बहुत अधिक है, जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
उन्होंने बताया कि डेंटल फ्लोरोसिस उच्च फ्लोराइड वाले क्षेत्रों में 70% बच्चों को प्रभावित कर रहा है, और कंकाल फ्लोरोसिस हड्डियों की गंभीर विकृति, जोड़ों के दर्द और विकलांगता का कारण बनता है, विशेष रूप से वयस्कों और बुजुर्ग आबादी में। विशेषज्ञों ने दंत और कंकाल स्वास्थ्य पर फ्लोरोसिस के विनाशकारी प्रभाव पर चर्चा की, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां भूजल में अक्सर खतरनाक रूप से उच्च फ्लोराइड स्तर होता है। सम्मेलन में भारत, जापान, थाईलैंड, चीन, ईरान और अन्य देशों के वैज्ञानिक मौजूद रहे।
सिफारिशें और भविष्य की दिशाएं
सम्मेलन ने सुरक्षित पेयजल तक पहुंच की आवश्यकता पर जोर दिया, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में। सुझाए गए उपायों में दूषित ट्यूबवेल को बंद करना, राज्य द्वारा उपलब्ध कराए गए स्रोतों से सुरक्षित पानी उपलब्ध कराना और फ्लोराइड विषाक्तता का मुकाबला करने के लिए आहार में कैल्शियम और विटामिन सी के अधिक सेवन को प्रोत्साहित करना शामिल था।