Delhi

ब्रेन स्ट्रोक पीड़ितों को एम्स में मिलेगा अत्याधुनिक स्टेंट- रिट्रिवर उपचार

-स्ट्रोक होने के 6-24 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचने वाले मरीज को मिल सकेगी रोग से निजात

नई दिल्ली, 28 अक्तूबर : पक्षाघात, अधरंग, लकवा या ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसा रोग है जो व्यक्ति को विकलांग बना देता है। लेकिन स्ट्रोक होने के छह से 24 घंटे के भीतर पीड़ित को अत्याधुनिक स्टेंट- रिट्रिवर डिवाइस का उपचार मिल जाए तो वह ठीक हो सकता है।

दरअसल, एम्स दिल्ली के न्यूरो साइंस केंद्र ने लकवा पीड़ितों के लिए ग्रासरूट (ग्रेविटी स्टेंट-रिट्रवर सिस्टम फॉर रिपर फ्यूजन ऑफ लार्ज वेसल ऑक्लूजन स्ट्रोक ट्रायल) तकनीक से ट्रायल आधार पर इलाज की प्रक्रिया शुरू की है। जिसके तहत डॉक्टरों ने बीते अगस्त माह में एक 58 वर्षीय पुरुष मरीज को पूर्णतया ठीक करने में ना सिर्फ कामयाबी हासिल की है। बल्कि एक अन्य लकवा पीड़ित पुरुष (67 वर्ष) का भी इलाज शुरू कर दिया है। यह ट्रायल भारत में एम्स सहित 16 स्थानों पर शुरू किए गए हैं जहां पीड़ितों को स्टेंट-रिट्रिवर के जरिये उपचार दिया जा रहा है। हालांकि, एम्स वर्ष 2008 से अबतक 300 ब्रेन स्ट्रोक पीड़ितों का परंपरागत पद्धति से भी उपचार कर चुका है।

एम्स के न्यूरो इमेजिंग एवं इंटरवेंशनल तंत्रिका विकिरण विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शैलेश गायकवाड़ ने बताया कि देश में प्रतिवर्ष अनुमानतः पौने चार लाख लोग स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। मगर, इनमें से महज 4500 पीड़ितों को ही जीवनरक्षक मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टॉमी इलाज मिल पाता है। जिसके चलते लकवा पीड़ितों की एक बड़ी आबादी इलाज से वंचित रह जाती है। ऐसे ही लोगों की सुविधा के लिए एम्स ने स्टेंट-रिट्रिवर परीक्षण शुरू किए हैं। एक वर्षीय परीक्षण के दौरान ग्रासरूट तकनीक की उपयोगिता और सुरक्षा का आकलन किया जाएगा और सकारात्मक व प्रभावी परिणाम की उच्च दर प्राप्त होने पर तकनीक की सुविधा देशभर के अस्पतालों में उपलब्ध हो सकेगी।

डॉ गायकवाड़ ने कहा, यदि स्ट्रोक पीड़ित व्यक्ति को 6 -24 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो वह न सिर्फ स्वस्थ हो सकता है बल्कि विकलांग होने से भी बच सकता है। मरीज को लाने में जितनी ज्यादा वक्त लगेगा इलाज का परिणाम उतना ही कम मिलेगा। डॉ दीप्ति विभा ने बताया कि भारत में ब्रेन स्ट्रोक एक बड़ी समस्या के तौर पर उभर रहा है। जिसके चलते कुल पीड़ितों में से एक तिहाई को उचित उपचार नहीं मिल पाता। एक तिहाई विकलांग हो जाते हैं जबकि महज एक तिहाई पीड़ित ही बच पाते हैं। उन्होंने बताया कि यह विदेशों में करीब 60 -70 वर्ष की उम्र के बुजुर्गों को होता है लेकिन भारत में यह 10 साल पहले यानि 50 -60 वर्ष की उम्र में ही लोगों को अपना शिकार बना रहा है।

1.75 लाख कीमत वाला स्टेंट जल्द मिलेगा 45 हजार में
ग्रास रूट तकनीक ब्रेन स्ट्रोक के उपचार में कारगर है। इसमें इंट्रावीनस मेडिसिन के साथ स्टेंट-रिट्रीवर डिवाइस शामिल है जो एक अभिनव चिकित्सा है। यह मस्तिष्क की धमनियों से रक्त के थक्कों को हटा सकता है जो स्ट्रोक का कारण बनते हैं। इसे भारत और अमेरिका के डॉक्टरों व इंजीनियरों ने मिलकर विकसित किया है। फिलहाल इसकी कीमत 1.75 लाख रु है जिसे आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत विकसित करने की योजना है। स्वदेश निर्मित स्टेंट की कीमत 75% तक कम हो जाएगी और 42 -45 हजार में उपलब्ध हो सकेगा।

एम्स में आते हैं सालाना 600 मरीज
डॉ गायकवाड़ ने बताया कि एम्स में 2008 से परंपरागत तरीके से ब्रेन स्ट्रोक का नियमित इलाज हो रहा है। अबतक 300 मरीजों का इलाज हो चुका है। वर्तमान में सालाना 600 मरीज ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित होकर इलाज के लिए एम्स आते हैं।

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