नई दिल्ली, 30 सितम्बर : पैसिव यूथेनेसिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु को लेकर केंद्र सरकार ने ड्राफ्ट गाइडलाइन जारी की हैं। जिसके तहत लाइलाज बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को हटाना भी अब चिकित्सकीय प्रक्रिया का हिस्सा होगा। इस संबंध में जनता से आगामी 20 अक्टूबर तक प्रतिक्रिया और सुझाव मांगे गए हैं।
दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘ड्राफ्ट गाइडलाइंस फॉर विदड्रॉल ऑफ लाइफ सपोर्ट इन टर्मिनली इल पेशेंट्स’ में कहा गया है कि डॉक्टरों को असाध्य बीमारी से पीड़ित मरीजों के लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम को हटाने का फैसला सोच-समझकर लेना चाहिए।खासकर ऐसे मरीजों के मामले में जो आईसीयू में भर्ती हैं और उनके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है। इसके लिए मंत्रालय ने चार शर्तें तय की हैं जिनमें पहली शर्त, ये है कि मरीज को ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका हो, जो अब किसी भी तरीके से जीवित नहीं हो सकेगा।
दूसरी शर्त ये है कि जांच में पता चल जाए कि मरीज की बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच गई है और इस स्थिति में इलाज का कोई लाभ नहीं होगा। तीसरी शर्त है मरीज या परिजनों की तरफ से लाइफ सपोर्ट जारी रखने से इनकार किया गया हो। चौथी और आखिरी शर्त है, लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय किए गए दिशा-निर्देशों के तहत हो। इसके साथ ही समाज में सक्रिय इच्छामृत्यु और निष्क्रिय इच्छामृत्यु को लेकर चर्चा फिर से शुरू हो गई है।
सक्रिय इच्छामृत्यु
भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु अभी भी अवैध है। इसमें मरीज के अनुरोध पर डॉक्टर या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर कुछ ऐसा करता है जिससे मरीज की मृत्यु हो जाती है। जैसे मरीज को किसी दवा की घातक खुराक का इंजेक्शन देना आदि।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु
निष्क्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब डॉक्टर मरीज की लाइलाज चिकित्सा स्थिति और परिजनों की सलाह के मद्देनजर मरीज को जीवित रखने के लिए जरूरी कार्य करना बंद कर देते हैं। जिनमें जीवन रक्षक मशीनें बंद करना, फीडिंग ट्यूब को अलग करना, जीवन विस्तार करने वाला ऑपरेशन न करना और जीवन बढ़ाने वाली दवाएं न देना शामिल हैं।