
नई दिल्ली, 7 अक्तूबर : मध्यप्रदेश और राजस्थान में खांसी की दवा पीने से करीब 16 बच्चों की मौत के बाद ब्रांडेड दवा भी संदेह के घेरे में आ गई है।
इससे पहले मरीजों की असमय मौत के लिए गैर ब्रांडेड दवाओं को जिम्मेदार बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता था। लेकिन कोल्ड्रिफ जैसी ब्रांडेड दवा ने ना सिर्फ आम आदमी के विश्वास को कमजोर किया है। बल्कि राज्य औषधि नियंत्रण विभाग को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। जो जनता को प्रभावी और सुरक्षित उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ बाजार को नकली, मिलावटी या प्रतिबंधित दवाओं से मुक्त रखने के लिए भी जिम्मेदार है। हालांकि, मध्य प्रदेश औषधि नियंत्रण विभाग ने श्री सन फार्मास्युटिकल द्वारा तमिलनाडु में निर्मित कोल्ड्रिफ कफ सिरप में 40% मिलावट पाने के बाद सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद यूपी और पंजाब ने भी इसकी बिक्री पर रोक लगा दी है। इन राज्य सरकारों ने प्रतिबंधित दवाओं को जब्त करने के लिए जगह -जगह छापेमारी भी शुरू कर दी है।
पहले भी आ चुके हैं खांसी दवा से मौत होने के मामले !
वर्ष 1998 में गुरुग्राम में ऐसा ही मामला आया था जिसमें खांसी की दवा से मौत हुई थी लेकिन वह गैर ब्रांडेड दवा थी। ऐसा पहली बार हुआ है कि ब्रांडेड दवा (कोल्ड्रिफ) के सेवन से मरीज की मौत हुई हो। अब तक जितने भी मामले सामने आए हैं वे सभी गैर ब्रांडेड दवाओं से संबंधित थे। साल 2023 में भारत के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने एक सर्दी की प्रचलित दवा के फार्मूले को चार साल के कम उम्र के बच्चों को दिए जाने पर प्रतिबंध लगाया था। इस फॉर्मूले में क्लोरफेनिरामाइन मैलेट और फेनिलेफ्रीने जैसे ड्रग्स शामिल थे जो 2015 में मंज़ूर किए गए थे और आमतौर पर खांसी-सर्दी के सिरप के मुख्य एलिमेंट्स होते हैं। यह प्रतिबंध उस समय आया था जब साल 2022 में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारत में बनी खांसी की दवाओं से बच्चों की मौत के मामलों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी थी। हालांकि, उक्त दवाओं के निर्माता किसी भी गलती से इनकार करते रहे हैं और दावा करते हैं कि उनके उत्पाद निर्धारित मात्रा में इस्तेमाल करने पर पूरी तरह सुरक्षित हैं।
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