नई दिल्ली, 21 अगस्त : बीते 12 अगस्त से लगातार हड़ताल पर डटे डॉक्टरों के चलते राजधानी दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था खराब हो चली है। हालांकि, डॉक्टरों ने ओपीडी सेवाओं, वैकल्पिक सर्जरी एवं लैब संबंधी जांच सेवाओं पर रोक और आपातकालीन सेवाओं को जारी रखने की घोषणा की है लेकिन मरीजों को न आपातकालीन सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं और न सामान्य सेवाएं मिल रही हैं।
पिछले करीब 10 दिन से राजधानी दिल्ली के किसी भी सरकारी अस्पताल में नए मरीजों का पंजीकरण नहीं हुआ है। मौसम में बदलाव व अन्य कारणों से लोग रोजाना बड़ी संख्या में बीमार पड़ रहे हैं लेकिन अस्पताल के दरवाजे गरीब और लाचार मरीजों के लिए बंद हैं। हड़ताल के चलते डॉक्टर न नए मरीजों को देख रहे हैं और न ही आपात स्थिति में आने वाले मरीजों को देख रहे हैं। हालांकि एक करोड़ 56 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहर में दिल्ली सरकार के 38, दिल्ली नगर निगम के छह और केंद्र सरकार के पांच बड़े अस्पताल मौजूद हैं लेकिन निजी अस्पताल में इलाज कराने में असमर्थ गरीब मरीजों को किसी भी अस्पताल में इलाज नहीं मिल रहा है। लोग न सिर्फ बिना इलाज अस्पताल से वापस लौट रहे हैं। बल्कि अगले दिन भी उपचार मिलने की आस छोड़ते जा रहे हैं। चूंकि, कोलकाता में महिला डॉक्टर के रेप और हत्या के विरोध में एक दिन की सांकेतिक हड़ताल अब अनिश्चितकालीन हो गई है।
बुधवार को रोहतास नगर की सरिता (फैक्ट्री वर्कर) कमर व पेट में भयंकर दर्द की शिकायत के साथ अपनी बहन संग जीटीबी अस्पताल पहुंची। मगर गार्ड ने आपातकालीन विभाग में घुसने ही नहीं दिया गया। कहा-डॉक्टरों की हड़ताल है इलाज नहीं होगा। इस दौरान उसकी बहन ने ओपीडी का पर्चा बनवाने की कोशिश की ताकि किसी तरह डॉक्टर उसकी बहन को देख लें मगर नए मरीजों के कार्ड बनाने पर रोक के चलते पर्चा नहीं बनवा पाई। उन्हें अस्पताल से इलाज के बगैर ही वापस लौटना पड़ा। ऐसा ही कबीर नगर की मेहनाज के साथ हुआ। जब वह इहबास पहुंची तो उसे डॉक्टर से मिलने का समय नहीं दिया गया जबकि वह काफी समय से इहबास के न्यूरो विभाग में ही इलाज करा रही है। मेहनाज ने बताया कि वह घर पर कपडे सिल कर गुजारा करती है। पिछले आठ दिन से उसकी दवा ख़त्म हो चुकी है और वह सिरदर्द की समस्या से परेशान है लेकिन न डॉक्टर देख रहे हैं और न दवा मिल रही है।
बुलंदशहर से सफदरजंग अस्पताल पहुंचे राम प्रसाद ने बताया कि मेरे बेटे राहुल (30 वर्ष) को कैंसर की सर्जरी के लिए डेट दी गई थी। लेकिन डॉक्टर मेरे बेटे की सर्जरी नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मेरा बेटा चार बहनों का इकलौता भाई है। वह गंभीर बीमारी का शिकार बन गया है। घर -परिवार के सदस्य और रिश्तेदार आदि उसकी सेहत के लिए दुआ मांग रहे हैं मगर उसका ऑपरेशन नहीं हो पा रहा है। भगवान जाने कब हड़ताल खत्म होगी और कब इलाज मिलेगा। ककरौला के बिरजू की कहानी भी कमोबेश ऐसी ही है। बिरजू चार दिन से रोज दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल इलाज के लिए आ रहे हैं लेकिन हर रोज गार्ड उन्हें कल आने के लिए कहकर लौटा देता है। उन्होंने बताया कि मुझे एक हफ्ते पहले खांसी के साथ खून आया था। पहले तो मैंने नजरअंदाज किया मगर जब घरवालों ने लगातार दबाव बनाया तो मुझे अस्पताल जांच कराने आना पड़ा। बिरजू ने बताया कि वह दिहाड़ी मजदूर है। प्राइवेट इलाज नहीं करवा सकता। आजकल काम भी नहीं कर रहा हूं फिर भी रोजाना किराये भाड़े में रोजाना पैसे खर्च हो रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक डॉक्टरों की हड़ताल के कारण पिछले दस दिन से दिल्ली में रोजाना एक से डेढ़ लाख मरीज बिना उपचार लौट रहे हैं। वहीं, तीन से चार हजार सर्जरी के प्लान निलंबित हो रहे हैं। यानी 10 दिन में 10 लाख मरीजों को सामान्य इलाज और 30 हजार मरीजों को जानलेवा रोग से बचाव करने वाली सर्जरी से वंचित होना पड़ा है। इस हड़ताल के दौरान विभिन्न रोगों से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए अंतिम विकल्प बन चुकी सर्जरी की डेट लगातार अस्पतालों में टल रही हैं। इससे जहां सर्जरी की डेट मिलने की बाट जोह रहे गंभीर स्थिति वाले मरीजों का प्रतीक्षा समय 10 दिन और बढ़ गया है। वहीं, दैनिक इलाज के लिए आने वाले सामान्य और जरूरतमंद मरीजों को प्राइवेट डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ रहा है। कल्याणकारी राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं निशुल्क होने के बावजूद गरीबों को पैसा खर्च करना पड़ रहा है।