
नई दिल्ली, 23 सितम्बर : एम्स दिल्ली में उपलब्ध नवीनतम दवाओं और अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित उपचार के चलते बाल कैंसर से पीड़ित करीब 6000 बच्चे मौत को हराने में कामयाब रहे हैं। ये बच्चे आज ना सिर्फ उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। बल्कि नौकरी और व्यापार करने के साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रहे हैं।
दरअसल बाल कैंसर, बच्चों में पाया जाने वाला ऐसा कैंसर है जो छोटे बच्चों (शिशुओं से 14 वर्ष की आयु तक) और किशोरों (15 से 19 वर्ष की आयु तक) को प्रभावित करता है। इससे जहां दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 4 लाख बच्चे पीड़ित होते हैं। वहीं, भारत में पाया जाने वाला बच्चों का कैंसर प्रतिवर्ष लगभग 76 हजार बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। इनमें से लगभग आधे बच्चों की बीमारियों की ही पहचान हो पाती है। शेष बच्चों की ना स्क्रीनिंग हो पाती है और ना इलाज मिल पाता है।
एम्स दिल्ली के बाल कैंसर रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. रचना सेठ ने बताया कि हमारी ओपीडी में प्रतिवर्ष लगभग ऐसे 450 बच्चे आते हैं जो कैंसर से ग्रस्त होते हैं। इनमें से 25% ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) और 25% रेटिनोब्लास्टोमा (आंख का कैंसर) से पीड़ित होते हैं। बाकी 50% एक्यूट लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया (एएलएल), ब्रेन ट्यूमर, लिम्फोमा, विंड्स ट्यूमर (किडनी का कैंसर), न्यूरोब्लास्टोमा और सार्कोमा (हड्डियों व मांसपेशियों का कैंसर) से पीड़ित होते हैं। इन बच्चों को कीमोथेरेपी,विकिरण चिकित्सा ,स्टेम सेल प्रत्यारोपण, इम्यूनोथेरेपी, लक्षित थेरेपी और ट्यूमर रिमूवल सर्जरी के जरिये उपचार दिया जाता है।
बाल कैंसर विशेषज्ञ डॉ. आदित्य कुमार गुप्ता ने बताया, नवीनतम दवाओं और अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित उपचार के चलते एम्स दिल्ली में बाल कैंसर सर्वाइवर की संख्या में इजाफा हुआ है। यहां करीब 10 साल पहले कैंसर को मात देने वाले बच्चों की संख्या 30% थी जो अब बढ़कर 75% हो गई है। इस संबंध में हमने डब्ल्यूएचो के मानक 60% सर्वाइवर के लक्ष्य को पीछे छोड़ दिया है। उम्मीद है कि हम जल्द ही अपने कैंसर सर्वाइवर बच्चों के आंकड़ों में और अधिक सुधार ला सकेंगे।
डॉ. जगदीश मीणा ने कहा, बाल कैंसर से पीड़ित कई बच्चों को कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच और आर्थिक कठिनाइयों जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें समय पर और प्रभावी उपचार मिलना मुश्किल हो जाता है। ऐसे बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए समाज में जागरूकता बढ़ाना और उनकी स्क्रीनिंग व उपचार की सुविधा की वकालत बेहद जरूरी है। अगर समय पर पता चल जाए और उचित उपचार किया जाए तो इनका इलाज संभव है। इसके अलावा हम गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से बचाव के लिए एचपीवी टीकाकरण जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं।
कैंसर देखभाल के लिए स्वदेशी गाइडलाइंस
डॉ. रचना सेठ ने कहा, कैंसर को मात देने वाले मरीजों के जीवन में कई बार कैंसर दोबारा लौट आता है। फ़िलहाल, कैंसर सर्वाइवर की देखभाल विदेशी गाइडलाइंस पर की जाती है लेकिन अब हमारे पास बाल कैंसर को लेकर पर्याप्त डेटा, अनुभव और ज्ञान उपलब्ध है। इसका उपयोग राष्ट्रीय कैंसर देखभाल के नियम विकसित करने के लिए किया जाएगा। इस कार्य के लिए एम्स दिल्ली सहित देश के 35 कैंसर चिकित्सा केंद्र मिलकर काम कर रहे हैं।
कीमोथेरेपी से नहीं झड़ेंगे सिर के बाल !
डॉ. आदित्य गुप्ता ने कहा, एम्स ने एक ऐसा डिवाइस विकसित किया है जो सिर को ठंडा रखता है। इसका प्रयोग कीमोथेरेपी लेने वाले अनेक कैंसर मरीजों पर करने के बाद सामने आया कि सिर के बाल झड़ने की समस्या काफी कम हो गई है। अभी इस पर थोड़ा शोध और सुधार का काम बाकी है। जल्द ही इसे कैंसर मरीजों को उपलब्ध कराया जाएगा।