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नई दिल्ली: स्वास्थ्य व जीवन शक्ति के लिए मददगार है प्रकृति परीक्षण

नई दिल्ली: - -एम्स दिल्ली के आयुर्वेद विभाग ने 2500 लोगों का किया प्रकृति परीक्षण

नई दिल्ली, 24 दिसम्बर : दुनिया में आने वाले हर बच्चे में जन्म से ही वात, पित्त और कफ का एक निश्चित अनुपात होता है। यही अनुपात बच्चे की प्रकृति को निर्धारित करता है। यदि व्यक्ति अपनी प्रकृति को पहचान ले और उसके मुताबिक अपने खान-पान और जीवनशैली में बदलाव ले आए तो वह स्वस्थ, हंसमुख और जीवन शक्ति से भरपूर बना रह सकता है।

यह जानकारी ‘देश का प्रकृति का परीक्षण’ अभियान के तहत लोगों को जागरूक करने के दौरान मंगलवार को सामने आई। इस दौरान एम्स दिल्ली के एकीकृत चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (सीआईएमआर) की साइंटिस्ट डॉ अवंतिका रानी ने कहा कि आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ जैसे तीन दोषों का वर्णन मिलता है। ये पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि जैसे पांच तत्वों में से दो से बने होते हैं और हर मनुष्य व ब्रह्मांड में व्याप्त होते हैं, लेकिन उनके प्रभाव बहुत अलग होते हैं। डॉ अवंतिका ने बताया, पिता के शुक्राणु और मां के अंडाणु में मौजूद वात, पित्त व कफ का अनुपात और गर्भ के अंदर की कंडीशन बच्चे की प्रकृति को तय करती है। यानि गर्भाधान के समय ही बच्चे की प्रकृति निर्धारित हो जाती है।

उन्होंने बताया कि व्यक्ति के शारीरिक गतिविधियों, खान -पान, निद्रा के पैटर्न और कुछ सवालों के जवाबों के आधार पर व्यक्ति की प्रकृति का आकलन किया जाता है। इससे जहां लोगों को अपने शरीर की प्रकृति के मुताबिक अपनी जीवनचर्या को निर्धारित करने में मदद मिलती है। वहीं वात, पित्त, कफ नाम की तीन जीवन ऊर्जाओं को संतुलित करके जीवन जीने की प्रेरणा भी मिलती है। डॉ अवंतिका ने बताया कि अब तक हम 2500 से अधिक लोगों का प्रकृति परीक्षण कर चुके हैं। इस अभियान में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), जीनोमिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलॉजी संस्थान (आईजीआईबी) और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ने भी सहयोग किया।

वात, पित्त, कफ के असंतुलन से होते हैं रोग
डॉ अवंतिका ने बताया कि जोड़ों के दर्द, अर्थराइटिस और नर्वस सिस्टम संबंधी रोगों समेत 80 प्रकार के रोग वात से होते हैं। त्वचा रोग, सोरायसिस, अल्सर और मेटाबॉलिक रोग समेत 40 प्रकार के रोग पित्त से और कुछ ह्रदय रोग, मोटापा व डायबिटीज जैसे 20 प्रकार के रोग कफ से होते हैं। इन तीनों दोषों को संतुलित करके स्वस्थ रहा जा सकता है।

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