Mental Health Tips: भावनात्मक लचीलापन मानसिक सेहत की कुंजी, जीवन की मुश्किलों से निपटने में मददगार

Mental Health Tips: भावनात्मक लचीलापन मानसिक सेहत की कुंजी, जीवन की मुश्किलों से निपटने में मददगार
नई दिल्ली, अगर आप जीवन की परेशानियों और मुश्किल हालात से आसानी से निपटना चाहते हैं और शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं, तो सबसे जरूरी है अपनी खुशियों और सुकून को प्राथमिकता देना। इसके लिए जरूरी है कि आप उन लोगों और परिस्थितियों से दूरी बनाएँ जो आपकी खुशी या मानसिक संतुलन को प्रभावित करते हैं।
यह बातें एम्स दिल्ली के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर नंद कुमार ने मंगलवार को कहीं। उन्होंने बताया कि इमोशनल वेल-बीइंग यानी भावनात्मक कल्याण किसी भी हेल्दी जीवन का अहम हिस्सा है। यह निर्धारित करता है कि हम कैसे सोचते हैं, कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और जीवन में किस तरह आगे बढ़ते हैं। भावनात्मक लचीलापन यानी मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने और भावनाओं को संभालने की क्षमता व्यक्ति को चिंता और तनाव से निपटने में सक्षम बनाती है और यह मानसिक स्वास्थ्य की बुनियाद है। इसका मतलब है तनाव और प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाना और कठिन परिस्थितियों से उबरने की क्षमता विकसित करना।
प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि वेल-बीइंग सिर्फ खुश रहना नहीं है। इसमें सामाजिक जुड़ाव बनाए रखना, अपनी भावनाओं को समझना, रोजमर्रा के काम करना, शारीरिक और सामाजिक रूप से सक्रिय रहना और समय-समय पर अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना शामिल है। वह कहते हैं कि अक्सर लोग चाहते हैं कि हर चीज़ बिल्कुल सही योजना के अनुसार हो, लेकिन जिंदगी हमेशा हमारे प्लान के हिसाब से नहीं चलती। देरी, परेशानी और बेचैनी को स्वीकार करना वास्तव में भावनात्मक लचीलापन विकसित करने में मदद करता है।
आहार और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध
प्रोफेसर कुमार ने कहा कि आहार और मानसिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है। शरीर को ऊर्जा और पोषण के लिए सही भोजन की आवश्यकता होती है, जिसे कम मात्रा में भी लिया जा सकता है। खाने को दवा की तरह लें और जितनी भूख हो उतना ही खाएं। हमारा आहार हमारे गट यानी पेट पर सीधा असर डालता है, क्योंकि गट में ट्रिलियन बैक्टीरिया होते हैं, जो हमारी छोटी दुनिया की तरह काम करते हैं। अधिक खाना, अनहेल्दी भोजन या अनियमित भोजन गट बैलेंस को बिगाड़ता है और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है।
ज्यादा चीनी वाला भोजन जैसे पिज़्ज़ा और बर्गर खाने के बाद शरीर भारीपन महसूस करता है, जबकि दही या प्रोबायोटिक्स जैसे हल्के और प्राकृतिक भोजन से मूड और ऊर्जा में फर्क महसूस होता है। आधुनिक फूड मार्केटिंग अक्सर अनहेल्दी विकल्प बढ़ावा देती है, जिससे खाने की आदतें खराब होती हैं और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है।
बोरियत और रुकावट भी जरूरी
प्रोफेसर ने बताया कि बोरियत हमेशा नकारात्मक नहीं होती। बच्चों के बोर होने की भावना दिमाग को फिर से सोचने, रिफ्रेश होने और नई चीज़ें समझने का अवसर देती है। लगातार व्यस्त रहना भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। दिमाग को रुकने, समझने और खुद की सुनने की आवश्यकता होती है।
भावनात्मक लचीलापन, संतुलित आहार और अपने लिए समय निकालना हमें मानसिक मजबूती प्रदान करता है और जीवन की मुश्किल परिस्थितियों में स्थिर रहने की क्षमता बढ़ाता है।





