दिल्लीभारतराज्यराज्य

डॉक्टरों ने सीखी नवजात शिशुओं को एनेस्थीसिया देने की प्रक्रिया

- आरएमएल अस्पताल की निओनेटल एयरवे वर्कशॉप में डॉक्टरों को दिया गया प्रशिक्षण

नई दिल्ली, 21 जुलाई : जन्मजात विकारों एवं अन्य समस्याओं के साथ जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य समस्याओं का एकमात्र इलाज सर्जरी है जो कभी -कभी शिशु के जन्म के महज छह घंटे बाद ही अंजाम देनी पड़ती है। ऐसे नाजुक मौके पर सर्जन की विशेषज्ञता के साथ एनेस्थेटिस्ट की विशेषज्ञता का होना बहुत जरुरी है ताकि सर्जिकल कट या चीरे की असहनीय पीड़ा शिशु की जान के लिए खतरा ना बन सके।

यह जानकारी राम मनोहर लोहिया अस्पताल के एनेस्थीसिया विभाग की ओर से आयोजित निओनेटल एयरवे वर्कशॉप में शिरकत करने पहुंचे विशेषज्ञों ने रविवार को दी। उन्होंने कहा, शिशुओं को एनेस्थीसिया देना एक बहुत ही संवेदनशील कार्य है। इसके लिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। इस दौरान आरएमएल के चिकित्सा निदेशक डॉ अजय शुक्ला, डीन आरती मारिया, एनेस्थीसिया एचओडी डॉ नीरजा बनर्जी, डॉ निशा कालरा, एम्स दिल्ली की डॉ देबोलीना और एम्स बठिंडा की डॉ ज्योति शर्मा सहित 30 से अधिक मेडिकल छात्र (पीजी कोर्स) मौजूद रहे।

इस अवसर पर डॉ आंचल कक्कड़ ने बताया कि सर्जरी के दौरान होने वाले दर्द से बचाने के लिए डॉक्टर मरीज को एनेस्थीसिया देते हैं। यह ऐसी दवाएं होती हैं जो मरीज के शरीर के कुछ हिस्सों को सुन्न कर देती हैं। वहीं, कुछ दवाएं उसके मस्तिष्क को सुन्न कर देती हैं, ताकि सर्जरी के दौरान मरीज को दर्द का अहसास न हो और वह आराम से सोया रहे। यह इंजेक्शन या गैस के माध्यम से भी दिया जाता है। लेकिन नवजात शिशु को एनेस्थीसिया देना एक चुनौती होता है। उन्होंने बताया कि वर्कशॉप में प्रशिक्षु डॉक्टरों को कंप्यूटराइज्ड शिशु मॉडल पर एनेस्थीसिया देने की प्रक्रिया सिखाई गई। साथ ही एनेस्थेटिक की उचित मात्रा और उसके प्रभाव व दुष्प्रभाव की जानकारी दी गई।

कब होती है नवजात की सर्जरी ?
प्रो कक्कड़ ने बताया कि 28 दिन तक के शिशु को नवजात शिशु माना जाता है। इनमें से अनेक शिशु गंभीर शारीरिक विकारों के साथ पैदा होते हैं जिनका तुरंत इलाज किया जाना जरुरी होता है और इलाज के तौर पर सर्जरी अनिवार्य होती है। कई शिशुओं के मामले में मां के गर्भ में शिशु का डायफ्राम पूरा न बनने के कारण उसकी अंतड़ियां खुद की छाती में घुस जाती हैं। तो कुछ शिशुओं में मलद्वार ही विकसित नहीं होता। वहीं, कुछ शिशुओं के भोजन और सांस की नली आपस में जुड़ी होती हैं और कई अन्य मामलों में शिशु की आंतें पेट से बाहर निकली होती हैं। इन सभी शिशुओं की समस्याओं का समाधान सिर्फ सर्जरी होता है जिसे विशेषज्ञ और अनुभवी एनेस्थेटिस्ट की देखरेख में संपन्न किया जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button