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आरएमएल अस्पताल, नई दिल्ली:आरएमएल स्वदेशी फोटो थेरेपी मशीनों से करेगा त्वचा रोगों का इलाज

आरएमएल अस्पताल, नई दिल्ली:-सफेद दाग और सोरायसिस जैसे त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों को मिलेगी निजात

आरएमएल अस्पताल, नई दिल्ली, 5 दिसम्बर: सफेद दाग और सोरायसिस जैसे त्वचा रोगों से पीड़ित मरीजों की सुविधा के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने फोटो थेरेपी यूनिट की स्थापना की है। जिसका उद्घाटन अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ अजय शुक्ला ने वीरवार को किया।

इस अवसर पर डॉ शुक्ला ने कहा कि हमने त्वचा रोगों के अत्याधुनिक इलाज के लिए फोटोथेरेपी यूनिट में स्वदेशी मशीनें लगाई हैं। इस यूनिट में अल्ट्रा वायलेट किरणों (यूवी रेज) के जरिये सफेद दाग यानि विटिलिगो के साथ त्वचा संबंधी संक्रमण व रोगों का उपचार किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि अस्पताल में पहले विदेश से आयातित मशीनों से त्वचा रोगों का इलाज किया जाता था, लेकिन वीरवार से आरम्भ यूनिट की सभी फोटोथेरेपी मशीन भारत में निर्मित हैं। इससे पहले यूएस में बनी मशीनों से इलाज होता था, जो काफी महंगी होती हैं।

आरएमएल के त्वचा रोग विभाग के प्रमुख डॉ कबीर सरदाना ने बताया कि अक्सर सर्दियों में त्वचा रोगियों की समस्या बढ़ जाती है क्योंकि ठंड के मौसम में यूवी रेज काफी कम मात्रा में धरती पर पहुंच पाती हैं। दूसरी अहम वजह प्रदूषण का असर भी है जिससे त्वचा रोगियों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। अब क्योंकि सर्दियां भी है और प्रदूषण भी है तो ऐसे में फोटोथेरेपी यूनिट से त्वचा रोगियों को बड़ी संख्या में लाभ मिल सकेगा। डॉ सरदाना के मुताबिक इन मशीनों के बेहतर इस्तेमाल के लिए हमने एक फोटोटेस्टिंग मीटर भी खरीदा है जो मरीज के संक्रमण का उचित परीक्षण और आकलन करने में मदद करेगा। इससे मरीजों को जरूरत के अनुसार ही यूपी रेज दी जा सकेगीं। इसके साथ ही हम मरीजों द्वारा खरीदे गए यूवी लैंप की भी जांच कर सकते हैं, जिसे कई बार मरीज खुद खरीदते हैं लेकिन वह मानक के अनुरूप सही नहीं होने के चलते अप्रभावी साबित होते हैं।

कैसे काम करती है फोटो थेरेपी ?
भारत में हमारे पास प्रचुर मात्रा में सूर्य का प्रकाश है, लेकिन सूर्य के प्रकाश का स्पेक्ट्रम फोटो डैमेज और कैंसर का कारण बन सकता है, इसलिए विटिलिगो, ल्यूपस, सोरायसिस जैसे त्वचा संबंधी रोगों से पीड़ित मरीजों को यूवी केंद्रित फोटोथेरेपी यूनिट में उपचार की सलाह दी जाती है। इस दौरान मरीज को उसकी त्वचा के संक्रमण के आधार पर एनबी, यूवीबी लाइट के माध्यम से यूवी रेज के संपर्क में लाया जाता है। यूवी रेज की मात्रा त्वचा विशेषज्ञ तय करते हैं। इन किरणों को चेहरे और हाथों के अलावा अन्य अंगों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

क्या है यूवीबी और यूवीए विकिरण ?
यूवीबी विकिरण विशेष रूप से एपिडर्मिस (त्वचा की सबसे ऊपरी परत) के साथ संपर्क करता है, यूवीए विकिरण ऊपरी डर्मिस तक भी पहुंचता है। इसलिए, यूवीबी विकिरण का इस्तेमाल एपिडर्मिस को प्रभावित करने वाले सतही त्वचा रोगों के लिए अधिक किया जाता है, जबकि यूवीए विकिरण का उपयोग डर्मिस को प्रभावित करने वाले गहरे त्वचा रोगों के लिए किया जाता है। इसका सबसे अधिक बेहतर प्रयोग सोरायसिस, विटिलिगो, माइकोसिस फंगोइड्स और स्केलेरोडर्मा में किया जाता है।

डेनमार्क से हुई यूवी थेरेपी की शुरुआत
आधुनिक फोटोथेरेपी की अवधारणा दोहरी यूवीआर और एनबी यूवीबी (311 एनएम) प्रकाश पर आधारित है और इसकी शुरुआत स्कैंडिनेविया से हुई जहां लंबी सर्दियों के कारण यूवी प्रकाश कम था। सबसे पहले नील्स रायबर्ग फिनसेन ने सूर्य के प्रकाश के जीवाणुनाशक प्रभावों को पहचाना और एक रासायनिक किरणों के लैंप के जरिये अपने दोस्त का इलाज किया जो ल्यूपस वल्गेरिस (त्वचा तपेदिक) से पीड़ित था। कुछ महीनों के भीतर वह दोस्त ठीक हो गया। उन्होंने कोपेनहेगन (डेनमार्क) में अपने फोटोथेरेपी संस्थान में एक फोकस करने योग्य कार्बन आर्क लैंप का इस्तेमाल करके ल्यूपस वल्गेरिस के 800 से अधिक रोगियों का सफल इलाज किया। इसके लिए उन्हें चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

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