
नई दिल्ली, 2 मई : अगर आपका बच्चा खेलने -कूदने में दर्द, आंख में लाली, जोड़ों में दर्द व सूजन जैसी समस्या होने की शिकायत करता है तो अनदेखा ना करें तुरंत नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें। चूंकि ये लक्षण जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस के हो सकते हैं जो बच्चों और किशोरों में पाया जाने वाला सबसे आम प्रकार का गठिया रोग है।
यह जानकारी एम्स दिल्ली के बाल चिकित्सा विभाग के गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र बागड़ी ने शुक्रवार को दी। उन्होंने बताया कि जे.आई.ए. यानि जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस रोग देशभर में बच्चों और किशोरों को तेजी से प्रभावित कर रहा है। जिसके चलते केवल एम्स दिल्ली में ही हर साल 250 से 300 मामले सामने आते हैं। इसके इलाज में अलग-अलग विशेषज्ञों का योगदान होता है जिनमें बाल गठिया विशेषज्ञ, हड्डी के विशेषज्ञ, आंख के विशेषज्ञ, कसरत के चिकित्सक शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि जे.आई.ए एक ऑटो इम्यून रोग है। जो आमतौर पर हाथों, घुटनों, टखनों, कोहनी और कलाई में जोड़ों के दर्द और सूजन का कारण बनता है। लेकिन, यह शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। यह 16 वर्ष की उम्र से पहले शुरू होता है जो अनुवांशिक कारणों एवं पर्यावरण कारणों (शायद संक्रमण) का मिला -जुला परिणाम है। अनुवांशिक कारणों के बावजूद यह बीमारी एक ही परिवार के दो बच्चों में बहुत कम पाई जाती है।
डॉ. बागड़ी ने कहा, अगर बच्चे के जोड़ों में दर्द और सूजन जैसे लक्षण 6 सप्ताह से अधिक दिखाई दें तो चिकित्सकीय जांच कराएं और जे.आई.ए. की पुष्टि होने पर इलाज शुरू कर दें। हालांकि, जे.आई.ए. ज्यादातर जोड़ों और आस-पास के ऊतकों को प्रभावित करता है, लेकिन यह आंखों, यकृत, हृदय और फेफड़ों जैसे अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। जे.आई.ए. एक पुरानी स्थिति है, जिसका अर्थ है कि यह महीनों और सालों तक रह सकती है।
डॉ. बागड़ी के मुताबिक जे.आई.ए. को जड़ से खत्म करने की कोई दवा नहीं है। बीमारी के इलाज का मकसद दर्द, थकावट, अकड़न को कम करना, जोड़ और हड्डी की खराबी को रोकना एवं कामकाज या शारीरिक गतिविधियों में सुधार करना है। पिछले दस वर्षों में बॉयोलोजिक दवाओं की शुरुआत से जे.आई.ए. के इलाज में जबरदस्त प्रगति हुई है। इसके अलावा रोगियों को अल्पावधि के लिए स्टेरॉयड और फिजियोथेरेपी के सेशन भी दिए जाते हैं।
स्क्रीन टाइम से बढ़ रहे किडनी रोग
एम्स के बाल चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ पंकज हरि ने कहा, आजकल छोटे बच्चों में भी किडनी रोग की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इसके पीछे स्क्रीन टाइम एक बड़ा कारण बनकर उभर रहा है। उन्होंने कहा, अक्सर बच्चे मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर पर घंटों वीडियो गेम खेलते नजर आते हैं। वह पेशाब आने पर टॉयलेट जाने की बजाय लंबे समय तक पेशाब को रोक लेते हैं ताकि उनका मनोरंजन प्रभावित न हो। लेकिन बार-बार लंबे समय तक पेशाब रोकने से किडनी पर दबाव पड़ता है, जो किडनी संबंधी कई अन्य समस्याओं का कारण बनता है। जैसे कि मूत्राशय का कमजोर होना, मूत्र असंयम और गुर्दे की पथरी।
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