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नई दिल्ली: ऑटिज्म रोग नहीं सोशल इंटरेक्शन प्रॉब्लम

नई दिल्ली: -एएसडी के पीछे अनुवांशिक, पर्यावरण और एपीजेनेटिक कारण प्रमुख

नई दिल्ली, 8 अप्रैल : ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) एक सोशल इंटरेक्शन प्रॉब्लम है। इससे पीड़ित बच्चे को अन्य लोगों से मेलजोल करने, पारस्परिक व्यवहार करने और प्रतिक्रिया करने में दिक्कत पेश आती है। इस समस्या के लक्षणों को पहचानकर पीड़ित बच्चे के जीवन को आसान बनाया जा सकता है।

यह बातें एम्स दिल्ली के पीडियाट्रिक्स विभाग के चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन की प्रोफेसर शेफाली गुलाटी ने विश्व ऑटिज्म जागरूकता माह के दौरान मंगलवार को कही। उन्होंने कहा, दुनियाभर में ऑटिज्म से प्रभावित लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है जिससे भारत भी अछूता नहीं है। इसके पीछे अनुवांशिक, पर्यावरण और एपीजेनेटिक कारण प्रमुख हैं। ऐसे में देश के नौनिहालों को एएसडी के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए उनकी स्क्रीनिंग बेहद जरुरी हो गई है।

उन्होंने कहा, एम्स दिल्ली विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से एक ऐसा स्क्रीनिंग मॉडल तैयार कर रहा है जिसकी मदद से देश के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों की विकासात्मक कठिनाइयों की प्रारंभिक जांच आसानी से की जा सकेगी। फिलहाल, इस संबंध में आई ट्रैकिंग डिवाइस का उपयोग किया जा रहा है जो न्यूरोडाइवर्स बच्चे की आंखों की गतिविधियों से उसकी अक्षमता का स्तर मापने में सक्षम है।

ग्लूटेन फ्री आहार चार्ट
डॉ गुलाटी ने बताया कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चे के खान -पान के मामले में बहुत ही चूजी होते हैं। वह कुछ ही चीजें खाना पसंद करते हैं। हमने 104 बच्चों की आदतों का अध्ययन करने के बाद एक विशेष आहार चार्ट तैयार किया है। इसमें बच्चे की पसंद और नापसंद के आधार पर ग्लूटेन फ्री फूड आइटम सहित अन्य खाद्य वस्तुओं को शामिल किया गया है। चार्ट से बच्चे के स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान दिया जा सकेगा।

ह्यूमनॉइड रोबोट्स करेंगे इलाज
डॉ गुलाटी ने बताया कि एआई-आधारित रोबोटिक खिलौने बच्चों की स्किल्स बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। ऐसे में एम्स दिल्ली ने आईआईटी दिल्ली के साथ मिलकर ह्यूमनॉइड रोबोट विकसित किया है जो एएसडी पीड़ित बच्चों को वार्तालाप करने और प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने में मदद करेगा। उम्मीद है कि पेटेंट मिलने के बाद यह रोबोट अगले दो महीने में एम्स की ओपीडी में एएसडी पीड़ितों को डायग्नोज करता नजर आएगा। इसके अलावा एक ऐप विकसित की जा रही है जो बच्चों को चित्रों और प्रतीकों के माध्यम से संवाद करने में मदद करेगी।

रक्त में मेटल की अधिकता बनी बायोमार्कर
एएसडी के प्रसार में मेटल का बड़ा रोल है। एक स्टडी के दौरान ऑटिज्म वाले बच्चों के रक्त में क्रोमियम, मरकरी, लेड जैसी धातुओं का स्तर सामान्य से बहुत अधिक पाया गया है। ये धातुएं बच्चों के निवास के आस-पास लेडयुक्त कबाड़, दूषित मिटटी, धातु वाले खिलौनों और पर्यावरणीय गतिविधियों के जरिये पहुंचती हैं। इसके अलावा दूषित पेयजल, रंग-रोगन, परंपरागत दवाइयां, सिगरेट का धुंआ, प्लास्टिक, बैटरी और नॉन फूड आइटम भी बड़े कारण हैं।

ऑटिज्म पीड़ित अभिभावक सहायता समूह
एम्स ने ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के अभिभावकों की मदद के लिए टेलीग्राम ऐप पर एक सहायता समूह बनाया है। जिसमें अब तक 1,200 से अधिक अभिभावक शामिल हो चुके हैं। ये लोग एक दूसरे के अनुभव से अपने बच्चों की देखभाल गतिविधियों में सुधार करते हैं। वहीं न्यूक्लियर फैमिली की स्थिति में अपने बच्चों को कुछ समय के लिए एक दूसरे के घर छोड़ने की सुविधा का लाभ भी उठा पाते हैं।

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