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Delhi : अल्ट्रासाउंड मशीनों में सॉफ्टवेयर बदलाव से रुक सकता है भ्रूण लिंग परीक्षण, दिल्ली स्वास्थ्य विभाग ने जताई चिंता

Delhi : अल्ट्रासाउंड मशीनों में सॉफ्टवेयर बदलाव से रुक सकता है भ्रूण लिंग परीक्षण, दिल्ली स्वास्थ्य विभाग ने जताई चिंता

नई दिल्ली, 4 दिसम्बर। देश के घटते महिला लिंगानुपात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने कहा है कि अल्ट्रासाउंड मशीनों में बहुत मामूली सॉफ्टवेयर बदलाव करके अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। विभाग के अनुसार यह तकनीकी सुधार पीसी-पीएनडीटी एक्ट के पालन को मजबूत करने के साथ-साथ कन्या भ्रूण हत्या की कड़ी रोकथाम में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

परिवार कल्याण निदेशालय के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. सत्यजीत कुमार ने बताया कि गर्भस्थ शिशु के लिंग का पता लगाने का प्रयास अधिकतर अल्ट्रासाउंड मशीनों के माध्यम से किया जाता है, जो एक विशेष सॉफ्टवेयर के साथ संचालित होती हैं। अल्ट्रासाउंड जांच में प्रोब को गर्भवती महिला के शरीर पर चलाया जाता है, और यह पूरे समय कंप्यूटर सिस्टम में स्वतः रिकॉर्ड होता रहता है। लेकिन जब प्रोब को शिशु के जननांगों (Genital part) पर केंद्रित किया जाता है और लिंग परीक्षण की कोशिश की जाती है, तो वह डेटा सिस्टम में दर्ज नहीं होता। यही वजह है कि अवैध लिंग परीक्षण का डिजिटल प्रमाण नहीं मिल पाता।

डॉ. कुमार के अनुसार यदि सॉफ्टवेयर में ऐसा फीचर जोड़ा जाए जिससे प्रोब की हर गतिविधि, विशेष रूप से जननांगों पर टच, स्वतः रिकॉर्ड हो जाए, तो मशीन की डेटा ट्रैकिंग देखकर तत्काल पता लगाया जा सकेगा कि लिंग परीक्षण का प्रयास किया गया था या नहीं। यह तकनीकी सुधार अवैध भ्रूण लिंग निर्धारण के खिलाफ एक मजबूत डिजिटल निगरानी तंत्र बन सकता है।

उन्होंने बताया कि अल्ट्रासाउंड मशीनों के कई ब्रांड उपलब्ध हैं, लेकिन देश की बड़ी संख्या में अल्ट्रासाउंड केंद्र मुख्य रूप से फिलिप्स कंपनी के उपकरणों का उपयोग करते हैं। दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य विभाग कंपनी को सॉफ्टवेयर संशोधन के लिए कई बार आधिकारिक पत्र भेज चुका है, लेकिन कंपनी अब तक इस सिफारिश को अनसुना कर रही है।

डॉ. कुमार ने दावा किया कि “अगर केवल कुछ लाइनों के कोड में परिवर्तन कर दिया जाए, तो कोई भी अल्ट्रासाउंड सेंटर अवैध भ्रूण लिंग परीक्षण नहीं कर सकेगा।” उन्होंने उम्मीद जताई कि कंपनियां सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए इस तकनीकी बदलाव को लागू करेंगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह सिस्टम पूरे देश में लागू किया जाए तो लिंगानुपात सुधारने की दिशा में यह ऐतिहासिक कदम हो सकता है और आने वाली पीढ़ी सुरक्षित हो सकेगी। साथ ही यह भी सवाल उठ रहा है कि जब समाधान इतना सरल और तकनीकी रूप से संभव है तो मशीन निर्माता कंपनियां इसे लागू करने से क्यों पीछे हट रही हैं।

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