सेक्टर-18 और 29 में बन रहा एसटीपी दो माह में शुरू होगा
सेक्टर-18 और 29 में बन रहा एसटीपी दो माह में शुरू होगा
अमर सैनी
नोएडा। यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यीडा) बसावट से पहले मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करने पर जोर दे रहा हैं। इस क्रम में सीवर की समस्या को ध्यान में रखते हुए यमुना सिटी के दो सेक्टरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण अगले दो माह में पूरा हो जाएगा। इनमें मशीन लगाने की कवायद तेज कर दी गई है। इनके शुरू होने से लाखों लोगों को गंदे पानी की दुर्गंध से निजात मिलेगी।
मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ. अरुणवीर सिंह ने बताया कि यीडा के सेक्टर-29 में 60 एमएलडी (मिनिमम लिक्विड डिसचार्ज) का एसटीपी तैयार हो रहा है। इसके निर्माण में 62.19 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। वहीं, सेक्टर-18 में 40 एलएलडी का एसटीपी बन रहा हैं। पहले चरण में इसकी क्षमता 20 एमएलडी होगी, बाद में इन्हें 80 एमएलडी तक बढ़ाया जा सकता है। यहां पर एसटीपी के निर्माण में तकरीबन 48 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। दोनों सेक्टरों में एसटीपी बनाने का काम तेजी से चल रहा है। यहां पर मशीनें स्थापित होनी शुरू हो गईं है। अगले दो माह में एसटीपी चालू हो जाएगा। ये दोनों एसटीपी पांच लाख की आबादी को कवर करेंगे। बता दें कि नोएडा और ग्रेनो में बसावट के बाद भी सीवरेज के पानी निकासी की व्यवस्था नहीं है। बारिश या बाढ़ जैसे हालातों में यहां पर बैक फ्लो के चलते सड़कों पर पानी भर जाता है। ऐसे में सेक्टर से निकलने वाला पानी खुले प्लाटों में छोड़ना पड़ता है, इस कारण पूरा दिन बदबू का माहौल रहता। इस सभी समस्याओं को देखते हुए यमुना प्राधिकरण पहले से ही सेक्टरों में एसटीपी की सुविधा पर जोर दे रहा हैं।
—
सेक्टर-24 के एसटीपी का निर्माण अटका
जमीन अधिग्रहण न होने से सेक्टर-24 में बनने वाले एसटीपी का निर्माण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। यहां पर भी 40 एमएलडी का एसटीपी बनेगा। प्रथम चरण में इसकी क्षमता भी 20 एमएलडी ही होगी। बता दें, कि सेक्टर-24 मिक्स लैंड का सेक्टर हैं, यहां पर आवासीय, औद्योगिक समेत सभी प्रकार के भूखंड आवंटित किए जा चुके हैं। तीनों एसटीपी में यीडा को कुल 158 करोड़ रुपए खर्च करना है।
—
क्या है एसटीपी
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में गंदे पानी और घर में प्रयोग किये गये जल के दूषणकारी अवयवों को विशेष विधि से साफ किया जाता है। इसको साफ करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके माध्यम से दूषित पानी को दोबारा प्रयोग में लाने लायक बनाया जाता है और इससे निकलने वाली गंदगी का इस प्रकार शोधन किया जाता है कि उसका उपयोग वातावरण के सहायक के रूप में किया जा सके।