
क्या जेहादी मानसिकता अब कोर्ट कचहरियों के आदेशों की भीड़तंत्र द्वारा धज्जियाँ उड़ाकर हिंसा, हत्या, आगज़नी कर आतंकी मानसिकता को नहीं दर्शा रहा। इसे गजवाए हिन्द के प्रारंभिक दौर की श्रेणी में क्यूँ ना रखा जाये। इसकी साज़िश करने वाले संभल की जामा मस्जिद के सदर ज़फ़र अली को हिरासत में लेकर पुलिस ने कहा है कि उनके ख़िलाफ़ भीड़ तंत्र को एक रात्र पूर्व सारी रात फ़ोन कर हज़ारों की हिंसक भीड़ को इकट्ठा करने के बहुत सारे साक्ष्य हैं। संभल की हत्या, हिंसा , आगज़नी पूर्ण रूप से पूर्व नियोजित थी और इसमें शामिल पच्चीस सौ जेहादी पहचाने गए हैं , पच्चीस हुड़दंगियों को गिरफ़्तार कर सरकार ने रासुका के अंदर बिलकुल सही केस दर्ज किया है। मेरी राय में ऐसे लोगों को कम से कम उम्र क़ैद होनी चाहिए , सख़्त से सख़्त सज़ा देनी चाहिए।राज्य और देश की अस्मिता की ऐसे धज्जियाँ उड़ाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।
मेरा तो विचार है कि संविधान की धारा 19 A के तहत बोलने लिखने की इजाज़त का दुरुपयोग करने वाले अखिलेश यादव और ओवेसी जैसे नेताओं पर भी भड़काने के क़ानून सहित कार्यवाही का समय अब आ गया है वरना ऐसे भ्रमित नेता भी जेहादियों और दंगाइयों को भड़काने का कार्य करते रहेंगे।
देश को यदि विकसित राष्ट्र बनाना है तो ऐसे अराजक हिंसा भड़काने वालों पर भी हिंसा करने वालों जैसा ही व्यवहार करना होगा। देश हित में सर्वोच्च न्यायालय को सरकार को ऐसे तत्वों के विरुद्ध सख़्त क़ानून बनाने का निर्देश दिया जाना चाहिए। संसद सदस्य होना किसी प्रकार की माफ़ी के योग्य नहीं है, इन संसद में बैठने वालों के ख़िलाफ़ तो और ज़्यादा सख़्त कार्यवाही होनी चाहिए। जो क़ानून बनाने के ज़िम्मेवार हैं वह कैसे हिंसक भीड़ के समर्थक हो सकते हैं।
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश उपचुनाव में करारी हार की ख़ीज मिटाने के लिए सरकार पर आरोप लगा रहे हैं की सरकार ने उपचुनाव में की धांधली को छिपाने के लिए ये दंगा करवाया है। उधर मुसलमानों के स्वघोषित प्रवक्ता ओवेसी कह रहे हैं की सरकार जुल्म कर रही है, उधर संभल के सांसद जीआउर्रहमान बर्क भी सरकार को दोषी बता रहें है।
इस हादसे का सत्य यह है कि एक पक्ष ने कोर्ट में दावा किया कि संभल की जामा मस्जिद मंदिर तोड़कर बनवाई गई है। कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए एएसआई को आदेश दिया की मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया जाये। यह समस्या के हल की एक संजीदा कोशिश थी। कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए प्रशासन ने 19 नवंबर को सर्वे कराने के लिए टीम भेजी जिसे इन दंगाइयों ने भगा दिया लेकिन प्रशासन कल फिर पूरी तैयारी के साथ मस्जिद पहुँची और सर्वे करवा लिया । इसे क़ानून , संविधान और लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखने वाले जेहादियों और उनके अखिलेश/ओवेसी जैसे समर्थक कुछ और ही रंग देकर राज्य में असंतोष फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
क्या हार से परेशान, निराश और कुंठित विपक्ष अपनी हार का ईमानदार विश्लेषण कर ऐसी घृणित कार्य कर अपनी हतेशा निकालेगा । उन्हें जनता ने तुष्टिकरण और उनकी नीतियों का जवाब महाराष्ट्र, हरियाणा विधान सभा और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, आसाम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के उपचुनावों में दे दिया है लेकिन लगता है अपनी समस्या पर शुतुरमुर्ग की तरह ज़मीन में सिर गड़ा कर ध्यान ना देकर हिंसा और अराजकता पैदा कर ख़ीज मिटाने का प्रयास कर रहें हैं। जनता इस सत्ताईस के सत्ताधीश को सबक़ दे चुकी है और ऐसा ही व्यवहार रहा तो सत्ताईस में भी देगी। ना जाने कौन सी दुनिया में जी रहें हैं यह नेता। आतंकवाद, अराजकता, हिंसा और मौत के तांडव से कोई राज्य या देश विकास नहीं कर सकता और राष्ट्र की जनता सिर्फ़ और सिर्फ़ विकसित भारत चाहता है। अखिलेश/राहुल/ओवेसी जैसे नेताओं को यह समझना ही होगा।
पुलिस पर यदि यह आतंकी पत्थर बाज़ी करेंगे तो क्या क़ानून व्यवस्था बनाने के लिए ज़िम्मेवार पुलिसकर्मी हाथ पर हाथ धर कर तमाशा देखने के लिए होते हैं।
संभल के आतंक को, अखिलेश और इंडी के नेताओं को सरकारी षड्यंत्र बताकर क्या वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ होने वाले प्रायोजित आंदोलन का ट्रायल तो नहीं किया गया है संभल में और यदि है तो इस मानसिकता को कुचलने का सही समय है।दुर्भाग्य है कि यह विद्वेषित नेता पुलिस कर्मियों पर हुए हमलों पर एक शब्द भी ना बोलकर क्या संदेश दे रहे हैं। क्या हमारे रक्षक इंसान नहीं है, उनके परिवार नहीं हैं। उन्हें क्यूँ मारा पीटा जाता है। पत्थर इकट्ठा कर हमला करने वालों के ख़िलाफ़ एक शब्द भी ना बोलकर यह इंडी गठबंधन के नेता क्या संदेश देना चाहते हैं।
राकेश शर्मा