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प्रेशर इंजरी के इलाज के लिए फोर्टिस ने मॉलनिके के साथ मिलाया हाथ

-स्टॉप प्रेशर इंजरी दिवस पर स्वास्थ्यकर्मियों को दिया विशेष प्रशिक्षण

नई दिल्ली, 20 नवम्बर : बेडसोर्स, डीक्यूबिटस अल्सर या प्रेशर अल्सर जैसी चोटों के इलाज के लिए फोर्टिस हेल्थकेयर ने दिल्ली एनसीआर स्थित अपने तमाम अस्पतालों में कार्यरत स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया।

इस अवसर पर फोर्टिस हेल्थकेयर के ग्रुप हेड डॉ बिष्णु पाणिग्रहि ने कहा कि आज स्टॉप प्रेशर इंजरी दिवस है जो प्रतिवर्ष नवंबर के तीसरे बुधवार को मनाया जाता है। इसके तहत मॉलनिके हेल्थ केयर इंडिया के साथ मिलकर हेल्थ केयर स्टाफ को एडवांस वुंड केयर संबंधी श्रेष्ठ प्रथाओं पर केंद्रित शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य दबाव जनित चोटों से बचाव और उनका प्रबंधन करने के साथ मरीज देखभाल के मानकों को ऊंचा करना है। इसके माध्यम से प्रेशर इंजरीज वाले मरीजों को हाई-क्वालिटी केयर मुहैया कराई जाएगी। इस अवसर पर ग्रेटर चाइना एंड इंडिया डब्ल्यूसी के वीपी जैकब सॉनेनबर्ग और डब्ल्यूसी, जी इंडिया वुंड केयरमॉलनिके हेल्थकेयर के निदेशक राजेश बाबू मौजूद रहे।

चीफ ऑफ नर्सिंग कैप्टन संध्या शंकर पांडेय और गिरजा शर्मा के मुताबिक प्रेशर इंजरीज वाले मरीजों में अन्य चोट वाले मरीजों की तुलना में मृत्युदर अधिक (दोगुनी) होती है। रिसर्च से यह भी सामने आया है कि एक्यूट हॉस्पीटलाइज़ेशन के दौरान, जिन मरीजों को प्रेशर इंजरीज की शिकायत होती है उन्हें मृत्यु दर का जोखिम भी अधिक होता है, और यह बिना प्रेशर इंजरीज वाले मरीजों में 15%की तुलना में करीब 67% तक होता है। इस प्रकार की की चोटों का सबसे ज्यादा खतरा सैक्रम, हील्स, ग्रेटर ट्रोकेंटर, इस्चियाल ट्यूबरोसिटी तथा सिर के पिछले हिस्से में होता है।

क्या होती है प्रेशर इंजरी ?
त्वचा पर लंबे समय तक दबाव पड़ने की वजह से शरीर की त्वचा और उसके नीचे मौजूद ऊतकों (टिशू) में घाव हो जाते हैं। उन्हें प्रेशर इंजरी कहते हैं। यह चोटें आमतौर पर हड्डी के उभारों पर होती हैं। ज्यादातर उन लोगों को होती हैं, जो ज्यादातर समय व्हीलचेयर पर रहते हैं या बीमारी के चलते बिस्तर पर रहना जिनकी मजबूरी होता है। दबाव से होने वाले अल्सर अक्सर एड़ियों, टखनों, कूल्हे और रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से पर होते हैं। वे बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं। ये चोटें, पहले लाल, दर्दनाक क्षेत्र के रूप में शुरू होती हैं और फिर बैंगनी हो जाती हैं जो मरीज के लिए गंभीर स्थिति उत्पन्न कर देती हैं।

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