Parasitic Twin India: लोकनायक अस्पताल में नवजात को मिला जीवनदान, परजीवी जुड़वां से मिली सफलता पूर्वक निजात

Parasitic Twin India: लोकनायक अस्पताल में नवजात को मिला जीवनदान, परजीवी जुड़वां से मिली सफलता पूर्वक निजात
नई दिल्ली, 04 नवम्बर — राजधानी दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (एमएएमसी) के डॉक्टरों ने एक अभूतपूर्व चिकित्सकीय उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने एक ऐसे नवजात शिशु का सफल उपचार किया है, जो परजीवी जुड़वां (Parasitic Twin) के रूप में पैदा हुआ था। डॉक्टरों का दावा है कि यह देश का पहला मामला है, जिसमें शिशु के तालु (Palate) पर एक परजीवी गांठ पाई गई थी।
यह मामला बेहद दुर्लभ और जटिल चिकित्सा स्थिति ‘फीटस इन फीटू (Fetus in Fetu)’ से जुड़ा है। इस स्थिति में एक अविकसित जुड़वां भ्रूण अपने सामान्य रूप से विकसित भाई या बहन के शरीर के भीतर या उससे जुड़ा हुआ पाया जाता है। परजीवी जुड़वां में स्वयं के महत्वपूर्ण अंग नहीं होते और वह पूरी तरह से अपने विकसित जुड़वां पर रक्त आपूर्ति के लिए निर्भर रहता है।
इस नवजात शिशु के मामले में, जन्म से पहले किए गए अल्ट्रासाउंड परीक्षण में ही उसके मुंह के ऊपरी हिस्से — यानी तालु — में एक असामान्य गांठ का पता चल गया था। जन्म के बाद यह गांठ (लगभग 15×12×8 सेंटीमीटर आकार) मुंह के भीतर से लटक रही थी, जिससे बच्चे को सांस लेने और दूध पीने में कठिनाई हो रही थी।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, एमएएमसी और लोकनायक अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुजॉय नियोगी के नेतृत्व में एक विशेष सर्जिकल टीम का गठन किया गया। टीम में डॉ. दीपक गोयल, डॉ. दिव्या तोमर और डॉ. राकेश शामिल थे। डॉक्टरों ने पहले शिशु की मां की सिजेरियन डिलीवरी कराई और तत्पश्चात नवजात की जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। सर्जरी के दौरान परजीवी गांठ को पूरी तरह हटा दिया गया, जिससे बच्चे की सांस लेने में रुकावट समाप्त हो गई।
ऑपरेशन के बाद शिशु को नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में रखा गया, जहाँ उसे सांस लेने और दूध पिलाने में सहायता प्रदान की गई। डॉक्टरों के अनुसार अब बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और सामान्य रूप से बोतल से दूध पी रहा है।
अस्पताल के निदेशक डॉ. बी.एल. चौधरी ने कहा कि यह मामला भारत की चिकित्सा प्रणाली की बढ़ती विशेषज्ञता और सहयोगात्मक स्वास्थ्य सेवाओं का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने बताया कि “यह सफलता प्रसवपूर्व निदान, उच्च स्तरीय सर्जिकल कौशल और टीम भावना के कारण संभव हो सकी है। यह भारत की बाल चिकित्सा शल्य चिकित्सा क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों की आवृत्ति बेहद कम होती है — विश्व स्तर पर हर 5 लाख से 10 लाख जन्मों में मात्र एक। इसलिए यह उपलब्धि न केवल लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों के समर्पण का प्रमाण है, बल्कि भारतीय चिकित्सा विज्ञान के विकास की नई मिसाल भी है।





