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पैकेज्ड फूड का लेबल, शरीर में कम करेगा शुगर, सॉल्ट, फैट का लेवल !

-अब पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के लेबल पर मोटे अक्षरों में मिलेगी नमक, चीनी, चिकनाई की पूर्ण जानकारी

नई दिल्ली, 7 जुलाई : नमक और चीनी का अत्यधिक सेवन जहां सेहतमंद लोगों को बीमार कर रहा है। वहीं, पैकेटबंद और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं। इसी के मद्देनजर भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर नमक, चीनी और वसा की लेबलिंग को मोटे अक्षरों व बड़े फॉन्ट में लिखना अनिवार्य कर दिया है। ताकि शुगर और बीपी के मरीजों से लेकर आम स्वस्थ लोग अपनी सेहत को प्रभावित करने वाले उत्पादों के सेवन से बच सकें।

दरअसल, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और भारतीय पोषण संस्थान (आईएनआई) ने अपनी गाइडलाइन्स (डायटरी गाइड लाइन्स फॉर इंडियन) के संशोधित संस्करण में नमक, चीनी, तेल और अल्ट्रा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से होने वाले खतरे के बारे में बताया है। इन चीजों के नियमित सेवन से गैर संचारी बीमारियों में इजाफा हो सकता है। गाइड लाइन में 5 ग्राम नमक और 25 ग्राम चीनी के नियमित सेवन को भी अधिक माना गया है।

इस गाइडलाइन पर अमल करने के लिए स्वास्थ्य सचिव और एफएसएसएआई के अध्यक्ष अपूर्वा चंद्रा की अध्यक्षता में शनिवार को एक बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के लेबल पर मोटे अक्षरों में तथा पहले से बड़े फॉन्ट आकार में कुल नमक, चीनी, संतृप्त वसा (सैचुरेटेड फैट) और सोडियम की मात्रा व पोषण संबंधी जानकारी प्रदर्शित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। जल्द ही इस संबंध में एक मसौदा अधिसूचना जारी की जाएगी और संबंधितों से आपत्तियां मांगी जाएगी।

एफएसएसएआई, खाद्य पदार्थों को लेकर झूठे और भ्रामक दावों को रोकने के लिए समय-समय पर सलाह जारी करता रहता है। इसने हाल ही में सभी खाद्य व्यापार संचालकों (एफबीओ) से पुनर्गठित फलों के रस के लेबल और विज्ञापनों से ‘100% फलों के रस’ के किसी भी दावे को हटाने को कहा है। साथ ही गेहूं का आटा/परिष्कृत गेहूं का आटा शब्द का प्रयोग न करने का भी निर्देश दिया है।

बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के वरिष्ठ अधिकारी, उद्योग संघों, उपभोक्ता संगठनों, शोध संस्थानों और किसान संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

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