One Health India: जूनोटिक रोगों से निपटने में ‘वन हेल्थ दृष्टिकोण’ सबसे प्रभावी उपाय

One Health India: जूनोटिक रोगों से निपटने में ‘वन हेल्थ दृष्टिकोण’ सबसे प्रभावी उपाय
विशेषज्ञ बोले — पालतू और जंगली जानवरों से तेजी से फैल रहे संक्रामक रोग, एकीकृत नीति जरूरी
नई दिल्ली, जैसे-जैसे विश्व स्तर पर जूनोटिक यानी जानवरों से फैलने वाले रोगों और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है, भारत भी अब अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठा रहा है। कोरोना महामारी के बाद देश ने महसूस किया कि ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए ‘वन हेल्थ’ (One Health) जैसी समग्र नीति की आवश्यकता है, ताकि महामारी आने की स्थिति में मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणाली एक साथ काम कर सके।
एक मंच पर आए विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और नीति निर्माता
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और एम्स, दिल्ली के सहयोग से जवाहरलाल नेहरू सभागार में आयोजित कार्यशाला में देशभर के विशेषज्ञों ने ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया। भारतीय महामारी विज्ञान फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर उमेश कपिल ने कहा कि हाल के वर्षों में मनुष्यों को प्रभावित करने वाले लगभग 75 प्रतिशत संक्रामक रोग पशु मूल के हैं, जबकि सभी मानव रोगजनकों में से करीब 60 प्रतिशत जूनोटिक हैं। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए अब अलग-अलग क्षेत्रों में बंटे प्रयास नहीं, बल्कि एकीकृत नीति की आवश्यकता है।
‘एक स्वास्थ्य’ ढांचे की मजबूती से टलेगी अगली महामारी
प्रो. कपिल ने बताया कि भारत जैसे देश में जहां पालतू और जंगली जानवरों के संपर्क में बड़ी आबादी रहती है, वहां जूनोटिक संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है। कोरोना, एवियन इन्फ्लूएंजा, निपाह, रेबीज, बर्ड फ्लू और सालमोनेलोसिस जैसे रोगों ने इस खतरे को और स्पष्ट किया है। इसलिए ज़रूरी है कि स्वास्थ्य क्षेत्र, पशुपालन विभाग, पर्यावरण संस्थान और शोध केंद्र एक साथ मिलकर ‘वन हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर’ को सशक्त बनाएं। इससे न केवल महामारी की रोकथाम संभव होगी, बल्कि भविष्य में संक्रमणों के प्रति देश की दीर्घकालिक लचीलापन क्षमता (resilience) भी बढ़ेगी।
जूनोटिक रोगों की उत्पत्ति और प्रसार का तरीका
डॉ. कपिल के अनुसार, जूनोटिक रोग वे संक्रमण हैं जो मनुष्यों और जानवरों के बीच आपसी संपर्क से फैलते हैं। ये वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी या फंगस से उत्पन्न होते हैं। संक्रमित जानवरों के काटने, दूषित भोजन या पानी, और शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से ये संक्रमण तेजी से मनुष्यों तक पहुंच जाते हैं। इनमें रेबीज, बर्ड फ्लू और सालमोनेलोसिस प्रमुख उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि यदि ‘वन हेल्थ’ मॉडल को नीति के रूप में लागू किया जाए तो संक्रमणों का शुरुआती पता लगाना, रोकथाम और नियंत्रण कहीं अधिक प्रभावी हो सकेगा।
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