Noida pollution: प्रदूषण का कहर, नोएडा में ऑक्सीजन स्तर 65 तक गिरा, अस्पतालों में सांस के मरीजों की भरमार

Noida pollution: प्रदूषण का कहर, नोएडा में ऑक्सीजन स्तर 65 तक गिरा, अस्पतालों में सांस के मरीजों की भरमार
नोएडा में बढ़ते वायु प्रदूषण ने लोगों की सेहत पर गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है। हवा की खराब गुणवत्ता के चलते जिला अस्पताल सहित निजी अस्पतालों की ओपीडी और आईसीयू में सांस से जुड़ी समस्याओं वाले मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिला अस्पताल की ओपीडी में ऐसे मरीज लगातार पहुंच रहे हैं, जिनका ऑक्सीजन सेचुरेशन खतरनाक स्तर तक गिरकर 65 से 75 के बीच दर्ज किया जा रहा है। डॉक्टरों के अनुसार सामान्य व्यक्ति का ऑक्सीजन स्तर 95 प्रतिशत या उससे अधिक होना चाहिए, ऐसे में इतने कम स्तर पर पहुंचना बेहद चिंताजनक है और मरीजों को तुरंत आईसीयू में भर्ती कर ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट देना पड़ रहा है। बीते दो दिनों में जिला अस्पताल के आईसीयू में नौ मरीज भर्ती किए गए, जिनमें से दो की हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा, हालांकि राहत की बात यह रही कि इलाज के बाद सभी मरीजों की स्थिति में सुधार देखा गया है।
सोमवार को एक 60 वर्षीय महिला को गंभीर सांस की तकलीफ के साथ अस्पताल लाया गया, जिनका ऑक्सीजन स्तर बेहद कम था, डॉक्टरों ने तत्काल ऑक्सीजन सपोर्ट देकर उनकी जान बचाई। जिला अस्पताल आईसीयू के प्रभारी डॉ असद ने बताया कि भर्ती होने वाले अधिकतर मरीज पहले से सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित हैं, जिनकी समस्या प्रदूषण के कारण और अधिक बढ़ गई है। वरिष्ठ फिजिशियन डॉ अनुराग सागर के अनुसार ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या में करीब 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, पहले जहां रोजाना लगभग 800 मरीज आते थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर करीब 1,000 तक पहुंच गई है, जिनमें से 250 से 300 मरीज खांसी, सांस फूलना, सीने में जकड़न और गले के संक्रमण की शिकायत लेकर आ रहे हैं। निजी अस्पतालों में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं, यथार्थ अस्पताल के डॉ अरुणाचलम एम ने बताया कि मौजूदा हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि पूरी तरह स्वस्थ व्यक्ति को भी लंबे समय तक बाहर रहने पर खांसी, सांस लेने में परेशानी, गले में खराश और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं और लगातार प्रदूषित हवा में रहने से फेफड़ों की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे शरीर को प्रभावित करता है और खांसी, दमा, हृदय रोग, सिरदर्द, थकान और यहां तक कि हार्ट अटैक तक का कारण बन सकता है, बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर इसका प्रभाव और भी अधिक घातक होता है। मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डॉ सुजीत नारायण ने बताया कि प्रदूषण के कारण हृदय रोगियों की ओपीडी में संख्या सामान्य दिनों की तुलना में करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, पीएम 2.5, पीएम 10 और ओजोन जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों के जरिए रक्त में प्रवेश कर सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाते हैं, जिससे हार्ट फेल्योर, स्ट्रोक और अचानक कार्डियक अरेस्ट का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। मेदांता अस्पताल के डॉ मनु मदान के अनुसार प्रदूषण बढ़ने के बाद ओपीडी और इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की संख्या 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ी है और पीएम 2.5 तथा पीएम 0.1 जैसे कण रक्त प्रवाह में मिलकर उच्च रक्तचाप, हृदय विफलता और हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म देते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों को पहले से हृदय रोग और डायबिटीज है, उनके लिए प्रदूषण एक खामोश लेकिन बेहद खतरनाक खतरा बन चुका है, क्योंकि पहले से मौजूद सूजन और शुगर असंतुलन के साथ मिलकर यह अचानक गंभीर हृदय घटनाओं का जोखिम कई गुना बढ़ा देता है, ऐसे में लोगों को विशेष सावधानी बरतने और अनावश्यक रूप से बाहर निकलने से बचने की सलाह दी जा रही है।





