
नई दिल्ली, 9 फरवरी : जन्मजात हृदय दोष (सीएचडी) यानि दिल में छेद होने की समस्या से पीड़ित बच्चों का इलाज पूर्णतया संभव है। मगर, उचित जानकारी के अभाव में अनेक माता-पिता अपने शिशु का इलाज नहीं करवा पाते। जिसके चलते सीएचडी से पीड़ित बच्चों को जीवनपर्यन्त गंभीर रोगों का सामना करना पड़ता है।
इस संबंध में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में सीएचडी जागरूकता सप्ताह (7 से 14 फरवरी तक) मनाया जा रहा है। इसके तहत लोगों को सीएचडी के लक्षण, कारण और निवारण की जानकारी प्रदान की जा रही है। बाल रोग विभाग के अध्यक्ष एवं बाल चिकित्सा कार्डियोलॉजी के प्रो. दिनेश कुमार यादव ने कहा कि सीएचडी या दिल में छेद होना, बच्चों के जन्म दोष का सबसे आम प्रकार है, जो लगभग हर 100 में से 1 बच्चे को प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा, सीएचडी के दो प्रकार हैं – सायनोटिक और एसायनोटिक। सायनोटिक हृदय रोग ऑक्सीजन की कमी के कारण त्वचा की नीले रंग के विकृति से जुड़ा हुआ है। इसमें हाथ, पैर की उंगलियां और होंठ नीले पड़ जाते हैं। दूसरी ओर, एसायनोटिक स्थितियों में पीड़ित के हृदय वाल्व में असामान्यताएं पाई जाती हैं जिसमें हृदय कक्षों के बीच छेद होना शामिल है। सीएचडी से पीड़ित कई बच्चों और वयस्कों को आजीवन देखभाल की जरूरत होती है, जिसमें सर्जरी, दवाएं और निरंतर निगरानी शामिल है।
डॉ यादव ने कहा, सीएचडी हृदय की संरचनात्मक समस्याएं हैं जो जन्म से ही मौजूद होती हैं। ये दोष हल्के से लेकर जानलेवा तक की गंभीरता में हो सकते हैं और हृदय के कक्षों, वाल्वों या रक्त वाहिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि इसकी सटीक वजह अज्ञात है, लेकिन कई जोखिम कारकों की पहचान की गई है, जिनमें पारिवारिक इतिहास,आनुवांशिक स्थितियां, मातृ स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिम शामिल हैं। अगर लोग सीएचडी के लक्षणों की जानकारी लेकर अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें तो सीएचडी पीड़ित बच्चों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाया जा सकता है।
आरएमएल एकमात्र केंद्र,नए केंद्रों की जरुरत
डॉ यादव ने कहा, दिल में छेद होने की समस्या से पीड़ित बच्चों की संख्या करीब दो लाख है लेकिन उनके इलाज के लिए चाइल्ड कार्डिओ सेंटर की संख्या नगण्य है। राजधानी दिल्ली में भी सिर्फ आरएमएल अस्पताल में ही इसका इलाज होता है। सीएचडी का इलाज काफी खर्चीला है जिसके चलते कई जरूरतमंद लोग अपने बच्चे का इलाज नहीं करवा पाते। इसलिए देश में बड़ी संख्या में नए सरकारी केंद्र खोले जाने की जरुरत है। ताकि सीएचडी से पीड़ित बच्चों को उचित समय पर इलाज मिल सके और वह स्वस्थ व जोखिम रहित जीवन जी सकें।
सीएचडी के लक्षण ?
जन्मजात हृदय दोष का मतलब हृदय या निलय के निचले दो कक्षों की दीवारों या पट पर बना एक छेद है। यह नवजात शिशुओं में स्वाभाविक रूप से मौजूद होता है और हृदय के विकसित होने पर अपने आप बंद हो जाता है। इस रोग में बच्चे को, मां का दूध पीने में दिक्कत होना, दूध पीते समय पसीना आना, पसली चलना, निमोनिया होना, शारीरिक विकास न होना, सीने में दर्द (एनजाइना) होना, सांस फूलना, दिल की धड़कन तेज होना या अनियमित होना, आसानी से थक जाना, चक्कर आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि सीएचडी के कुछ मामलों में कोई लक्षण नहीं दिखते। ऐसे में, नियमित चिकित्सा परीक्षा या टेस्ट के जरिए ही सीएचडी का पता लगाया जा सकता है।
दिल में छेद होने के परिणाम ?
अगर दिल का छेद बंद नहीं होता है तो बाएं वेंट्रिकल से ऑक्सीजन युक्त रक्त, इस छेद के माध्यम से दाएं वेंट्रिकल में बहता है, ऑक्सीजन रहित रक्त के साथ मिल जाता है और फेफड़ों में चला जाता है। यह अतिरिक्त रक्त शिशु के हृदय और फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव बनाता है। अगर छेद बना रहता है, तो यह वयस्क अवस्था में फेफड़ों में उच्च रक्तचाप, अनियमित दिल की धड़कन, स्ट्रोक और यहां तक कि हार्ट अटैक को जन्म दे सकता है।