नई दिल्ली, 16 सितम्बर: देश में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियां उपलब्ध होने के बावजूद एलोपैथिक पद्धति पर लोगों का विश्वास जहां इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है। वहीं, इसकी खामियों का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है, जिसे हैंड बैंड, क्यूआर कोड व कलर कोडेड स्टिकर से काफी हद तक दूर किया जा सकता है।
दरअसल, 17 सितंबर को पूरी दुनिया में विश्व रोगी सुरक्षा दिवस मनाया जा रहा है। यह दिवस मनाए जाने का मकसद प्रत्येक रोगी को सुरक्षित चिकित्सा उपलब्ध करवाना है। ताकि इससे मरीज की जिंदगी को बचाया जा सके। चिकित्सा के दौरान ऐसा कोई असुरक्षित तौर-तरीका इस्तेमाल नहीं किया जाए, जिससे कि रोगी की मौत हो जाए। मगर, मरीज को तुरंत आराम देने वाली एलोपैथिक पद्धति विभिन्न कारणों से मरीजों की स्थायी विकलांगता से लेकर जान जाने तक का सबब बन रही है।
उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी चिकित्सकीय खामियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने की मांग की है। हालांकि,भारत सरकार ने राष्ट्रीय रोगी सुरक्षा कार्यान्वयन ढांचा (एनपीएसआईएफ) 2018-2025 विकसित करके देशभर के चिकित्सा संस्थानों के समक्ष एक कार्य योजना पेश की है। इसके तहत चिकित्सा संस्थानों को अपने चिकित्सकीय प्रबंधन के साथ दवा सुरक्षा व रोगी सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार करना होगा।
इस संबंध में राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मेडिसिन विभाग के निदेशक प्रोफेसर डॉ सुभाष गिरी ने बताया कि अक्सर अस्पताल में उपचार के दौरान ब्लड ट्रांसफ्यूजन और ब्लड सैंपलिंग में लापरवाही, साफ-सफाई न होने से इंफेक्शन, ऑपरेशन के दौरान की जाने वाली लापरवाही, बच्चे की अदला -बदली, गलत दवाओं और इंजेक्शन का उपयोग इत्यादि से मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है। ऐसी लापरवाहियों को स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सतर्कता और हैंड बैंड व कलर कोडेड स्टिकर से नियंत्रित किया जा सकता है।
डॉ गिरी ने कहा कि वर्ष 2024 के विश्व रोगी सुरक्षा दिवस की थीम रोगी सुरक्षा के लिए निदान में सुधार पर केंद्रित है, जिसका नारा है ‘इसे सही करें, इसे सुरक्षित बनाएं!’। इस दिन, रोगी और परिवार, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वास्थ्य देखभाल नेता, नीति निर्माता और नागरिक समाज रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए सही और समय पर निदान की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देंगे। देरी से, गलत या छूटे हुए निदान से मरीज की बीमारी लंबी हो सकती है और कभी-कभी विकलांगता या मृत्यु भी हो सकती है।
करीब 26 लाख मरीज गंवा चुके हैं जान
डब्ल्यूएचओ के दक्षिण पूर्व एशिया निदेशक कार्यालय के मुताबिक इस क्षेत्र में वर्ष 2022 तक असुरक्षित चिकित्सकीय सेवा से संबंधित करीब 13.4 करोड़ मामले सामने आ चुके हैं जिनमें करीब 26 लाख मरीज जान गंवा चुके हैं।
हैंड बैंड के बारे में
इसमें हर प्रक्रिया या परीक्षण से पहले रोगी का नाम और जन्म तिथि जांची जाती है और रोगी को दवा देने या प्रयोगशाला में नमूना लेने से पहले भी बार कोड स्कैन किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि रोगी को हर बार सही समय पर सही देखभाल मिले। इसके अलावा सुरक्षा स्टिकर का प्रयोग किया जा सकता है। ये अलग अलग रंग के होते हैं जिनसे स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को मरीज की शारीरिक स्थिति (एलर्जी, अचानक गिरने, डीएनआर और लेटेक्स एलर्जी आदि) की जानकारी आसानी से मिल जाती है। आईडी बैंड पर रोगी का नाम, जन्मतिथि और दो बार कोड अंकित होते हैं। इसके अलावा बैंड पर अलग अलग रंग के सुरक्षा-चेतावनी स्टिकर लगा सकते हैं।
लाल:
एलर्जी: किसी भी प्रकार के भोजन, दवा या पर्यावरण से एलर्जी या संवेदनशीलता वाले रोगियों के लिए – लेटेक्स एलर्जी को छोड़कर, जिसे अपना स्वयं का सुरक्षा-चेतावनी रंग (हरा) दिया गया है।
पीला
गिरना: ऐसे रोगियों के लिए जिनके गिरने का खतरा होता है, जिससे चोट लग सकती है।
बैंगनी
पुनर्जीवित न करें (डीएनआर): डीएनआर (डू-नॉट-रिससिटेट) का मतलब है कि अगर किसी मरीज का दिल रुक जाए या सांस रुक जाए, तो उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश नहीं की जाएगी।
गुलाबी
प्रतिबंधित अंग: ऐसे रोगियों के लिए जिन्हें अपने एक हाथ या पैर का उपयोग करने या हिलाने से प्रतिबंधित किया गया है। (आईडी रिस्टबैंड पर स्टिकर के अलावा, हम संरक्षित या प्रतिबंधित किए जा रहे हाथ या पैर पर एक अलग गुलाबी बैंड लगाते हैं।)
हरा
लेटेक्स एलर्जी: लेटेक्स एलर्जी वाले रोगियों को कुछ विशेष खाद्य पदार्थ खाने पर एलर्जी होती है, जिनमें एवोकाडो, केला, चेस्टनट, कीवीफ्रूट, पैशन फ्रूट, प्लम, स्ट्रॉबेरी और टमाटर शामिल हैं।