नई दिल्ली, 2 सितम्बर: एम्स दिल्ली के आरपी सेंटर के डॉ तुषार अग्रवाल ने बताया कि अब हमने कस्टमाइज्ड कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन की ओर रुख किया है। इसमें मरीज के कॉर्निया की केवल रोगग्रस्त परत को बदला जाता है और बाकी परतों को बरकरार रखा जाता है। इन तकनीकों में डेसिमेट स्ट्रिपिंग ऑटोमेटेड एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी, डेसिमेट मेम्ब्रेन एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी और डीप इंटीरियर लैमेलर केराटोप्लास्टी शामिल हैं।
डॉ अग्रवाल के मुताबिक प्रत्येक व्यक्ति के आंख के कॉर्निया में छह परत होती हैं जिन्हे नई तकनीक के जरिये अलग किया जा सकता है। उन्होंने कहा, कस्टमाइज्ड कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन के दौरान मरीज की आंख का पूरा कॉर्निया बदलने की बजाय उसके कॉर्निया की खराब परत को ही बदला जाता है। इस प्रक्रिया से जहां मरीज की रिकवरी जल्दी हो जाती है। वहीं, दुर्लभ कॉर्निया की अन्य परतें किसी और मरीज के काम आ जाती हैं। यानी नई तकनीक से एक आंख के कॉर्निया से कम से कम तीन लोगों को दृष्टि या आंख की रोशनी मिल सकती है।