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नई दिल्ली: शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी हो सकता है मेडिकल इमरजेंसी

नई दिल्ली: -मानसिक विकार को लेकर ना झिझकें, ना शर्माएं, मनोचिकित्सक से इलाज पाएं

नई दिल्ली, 9 सितम्बर : अगर क्षणिक आवेश व्यक्ति की जीवन लीला को समाप्त कर सकता है तो दोस्त, रिश्तेदार व परिवार के दो शब्द उसके जीवन को बचा सकते हैं। यह बातें आरएमएल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. लोकेश सिंह शेखावत ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की पूर्व संध्या पर कहीं।

उन्होंने बताया कि आत्महत्या के कारण दुनिया भर में हर साल 7,40,000 से अधिक मौतें होती हैं। इनमें से लगभग 73 प्रतिशत आत्महत्याएं कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। यह 15 से 29 साल आयु वर्ग के लोगों में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। डॉ. शेखावत ने बताया कि अक्सर लोग आत्महत्या का प्रयास आवेश में आकर करते हैं, जैसे पारिवारिक झगड़े, आपसी लड़ाई और ब्रेकअप आदि। अगर ऐसे समय में व्यक्ति को कुछ पलों के लिए उस बात से दूर कर दिया जाए जिससे वह आवेग में आ रहा है तो वह आत्महत्या जैसा प्रयास नहीं करेगा। इन घटनाओं को समाज की मदद से काफी हद तक रोका जा सकता है जिसके लिए समाज को पहल करनी होगी।

ऐसे में हमें अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिचितों से नियमित अंतराल पर संवाद करना होगा और जब हम अपने आस-पास कोई व्यक्ति परेशान दिखाई दे तो हमें चाहिए कि हम उसकी बात सिर्फ सुन लें। उसे यह जताएं कि हम उसकी परिस्थिति को समझ रहे हैं। यह तरीका उस व्यक्ति के तनाव को कम करने में सहायक साबित होगा और वह संभावित आवेग वाली परिस्थितियों में फंसने से बच सकेगा।

डा. शेखावत के मुताबिक आत्महत्या से जुड़े मुद्दों में सामाजिक दबाव और पारिवारिक कारण सबसे महत्वपूर्ण हैं। इसमें लगभग 30 प्रतिशत अतिरिक्त योगदान मानसिक बीमारियों का है। इनमें डिप्रेशन, एंजायटी, सायकोटिक डिसऑर्डर के साथ नशे से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं जोकि आत्महत्या से संबंधित व्यवहार को बढ़ावा देती हैं। ऐसे में मानसिक बीमारियों की पहचान और सही समय पर इलाज करवाना भी आत्महत्या के मामलों को रोकने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि आत्महत्या से मरने वाले लगभग 50 से 90 प्रतिशत व्यक्ति अवसाद, चिंता और द्विध्रुवी विकार जैसी मानसिक बीमारियों से पीड़ित होते हैं।

कैसे करें आत्महत्या के मामले कम
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार बढ़ाकर समाज में मेंटल हेल्थ के प्रति बने हुए दृष्टिकोण में बदलाव लाया जा सकता है। जब व्यक्ति की मेंटल हेल्थ को फिजिकल हेल्थ की तरह समझा जाएगा तो समाज उसे पागल या दीवाना कहकर प्रताड़ित नहीं करेगा। पीड़ित व्यक्ति भी खुद को समाज में पागल समझे जाने के डर से बाहर निकल सकेगा और मेंटल हेल्थ खराब होने पर इमरजेंसी में डॉक्टर से परामर्श लेने की पहल कर सकेगा। अपने मन की बात निसंकोच कर सकेगा और अच्छा व सकारात्मक जीवन जी सकेगा।

परिवार, मित्र, सामुदायिक संगठनों का नेटवर्क मददगार
स्कूलों और विश्वविद्यालयों को व्यापक मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम लागू करने चाहिए जो मानसिक बीमारी के लक्षणों को संबोधित करते हैं और सहायता के लिए संसाधन प्रदान करते हैं। आत्महत्या को रोकने के लिए परिवार, मित्र और सामुदायिक संगठनों सहित सहायता प्रणालियों की उपलब्धता बेहद जरूरी है। सहायता का एक मजबूत नेटवर्क बनाने से व्यक्तियों को कठिन समय के दौरान आवश्यक भावनात्मक और व्यवहारिक सहायता मिल सकती है। जो उन्हें आत्महत्या करने जैसे विचारों से दूर रखने में मदद कर सकती है।

टेली मानस हेल्पलाइन कर रही मदद
अक्टूबर 2022 में, केंद्र सरकार ने 24×7 मानसिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की घोषणा की, जिसे टेली-मानस (राज्यों में टेली मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग) नाम दिया गया है। टेली-मानस सेवाएं 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 53 केंद्रों के माध्यम से उपलब्ध हैं। इस टोल-फ्री हेल्पलाइन पर फरवरी माह तक 18 लाख से ज्यादा कॉल आए और उन्हें उचित परामर्श देने के साथ काउंसलिंग भी की गई। ये सेवाएं 20 भाषाओं में उपलब्ध हैं।

प्रति एक लाख आबादी पर 12 से ज्यादा आत्महत्या
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2018-2022 की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, भारत में उस साल 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो 2021 की तुलना में 4.2 % ज्यादा और 2018 की तुलना में 27% का उछाल है। यानि 2022 में प्रति एक लाख आबादी पर आत्महत्या की दर बढ़कर 12.4 हो गई है। इस संबंध में एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट सामने नहीं आई है।

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