Delhi : वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुमित अवस्थी के वायरल क्लिप्स की सच्चाई क्या है: Digital Assassination है क्या ये!

Delhi : (अभिषेक मेहरोत्रा, मीडिया कॉमेंटेटर) सोशल मीडिया के इस युग में आप जो कुछ कहते हैं या करते हैं, वो उसी रूप में लोगों तक पहुंचे इसकी कोई गारंटी नहीं है. अक्सर आपकी बातों को ऐसे पेश किया जाता है ताकि उस पर एक राय कायम की हो और आपको कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है.
वरिष्ठ पत्रकार सुमित अवस्थी के साथ भी यही हो रहा है. उनके हालिया एक पॉडकास्ट को लेकर बवाल मचा हुआ है. ये पॉडकास्ट उन्होंने अपनी नई बुक के प्रमोशन के तहत दिया था। गौरतलब है दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल पर उनकी नई किताब Un-Finished- The End of Kejriwal Era ? आजकल चर्चा में है।
सुमित अवस्थी अपनी किताब के प्रमोशन के लिए जिस पॉडकास्ट में गए, उसे भानु पाठक होस्ट करते हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी बतौर प्रभावकारी इनफ्लुएंसर सम्मानित कर चुके हैं. भानु ने वो सवाल किए जिसके जवाब आमजन एक वरिष्ठ पत्रकार से जानना चाहते हैं। इन तीखे और सवालों का जवाब यदि कोई ईमानदार, संवेदनशील पत्रकार देता है, तो उससे चुभन महसूस हो सकती है. सवाल के गोल-गोल जवाब देने की कला में कई पत्रकार पारंगत होंगे, लेकिन सुमित अवस्थी ऐसे नहीं हैं. वह स्पष्ट एवं सीधी बात करते हैं, और सीधी बातें अक्सर लोगों को असहज कर जाती हैं. सुमित अवस्थी के पास सवालों के जवाब में मुस्कुराने का अवसर था, आजकल के दौर में इंटरव्यू के दौरान ऐसा अक्सर देखने को मिलता है. मगर सुमित ने हर सवाल का जवाब दिया. और उनके जवाब को अब कुछ अलग ही अंदाज में पेश किया जा रहा है. अवस्थी एक तरह से डिजिटल असैसनेशन का शिकार हो गए हैं. ये डिजिटल अरेस्ट की ही तरह का नया वार है, जहां आपके मुंह से निकली बात के कुछ अंशों को इस तरह पेश किया जाता है जहां अर्थ का अनर्थ हो जाता है और वक्ता की छवि को पूरी तरह धूमिल किया जाता है
पिछले दो दिनों से सुमित के पॉडकास्ट की छोटी-छोटी क्लिप वायरल हो रही हैं और हर कोई अपने हिसाब से उनका इस्तेमाल कर रहा है. चूंकि बिहार में सियासी पारा चढ़ा हुआ है, इसलिए अवस्थी का पॉडकास्ट कांग्रेस और राजद जैसे विपक्षी दलों के नेताओं के लिए हथियार भी बन गया है.
हालांकि, इस पॉडकास्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसे विवादस्पद या सनसनीखेज बनाए. इसमें है तो बस सच्चाई और एक पत्रकार का दर्द. सुमित अवस्थी ने पॉडकास्ट में पूछे गए हर सवाल का बेवाकी एवं ईमानदारी से जवाब दिया. यही अपेक्षा एक पत्रकार से भी की जाती है. उन्होंने बताया कि गोदी मीडिया क्या है और पत्रकारों की विवशता भी समझाई. पत्रकार अपनी संस्था के अनुरूप चलता है और संस्था को चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है, जो सरकारी विज्ञापनों से पूरी होती है. इसलिए न चाहते हुए भी पत्रकार को कभी-कभी सत्ता-प्रतिष्ठान को खुश करने वाली खबरें चलानी होती हैं. यह एक सर्वविदित सच्चाई है, अवस्थी ने बस इस सच्चाई से सबको एक बार फिर से रूबरू कराया है.
अवस्थी का यह विचार किसी पार्टी के खिलाफ या किसी के पक्ष में नहीं है. उन्होंने केवल व्यवस्था की मजबूरियों को बयां किया है. यह पहले भी होता था, अब भी हो रहा है और तब तक होता रहेगा, जब तक मीडिया संस्थानों की सरकारी विज्ञापनों पर निर्भरता खत्म नहीं हो जाती. जनता यदि सब्सक्रिप्शन बेस्ड पत्रकारिता को खुलेदिल से स्वीकार ले, तो मीडिया संस्थानों की इस निर्भरता को कम किया जा सकता है. लेकिन इसकी संभावना न के बराबर है. क्योंकि लोग सबकुछ मुफ्त में चाहते हैं. इस साफगोई के लिए सुमित अवस्थी प्रशंसा के पात्र हैं. उन्होंने महज उस अघोषित परंपरा पर सवाल उठाए हैं, जो दशकों से चली आ रही है. इसे किसी पार्टी विशेष से जोड़कर देखना नासमझी और नादानी है.
सुमित अवस्थी ने वास्तव में क्या कहा, या वह क्या कहना चाह रहे थे, यह समझने के लिए पूरा पॉडकास्ट देखना ज़रूरी है. छोटी -छोटी क्लिप उनकी भावनाओं और जवाबों का चित्रण नहीं हैं. जैसे यदि एक पूरे वाक्य में से आप कोई एक शब्द निकाल लें, तो कभी-कभी अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है. इसलिए कोई भी राय कायम करने से पहले पूरा वाक्य पढ़ना ज़रूरी है. सुमित अवस्थी के मामले में भी यही हो रहा है