उत्तर प्रदेश : गुरु पूर्णिमा और मुड़िया पूर्णिमा, दो अलग परंपराएं, एक ही पावन तिथि
आषाढ़ मास की पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में बेहद महत्वपूर्ण माना...

Mathura News (सौरभ) आषाढ़ मास की पूर्णिमा का दिन भारतीय संस्कृति में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन देशभर में जहां गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है, वहीं ब्रजभूमि में इसे मुड़िया पूर्णिमा के रूप में विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है। भले ही दोनों पर्व एक ही तिथि पर पड़ते हों, लेकिन इनके मनाने के पीछे की मान्यताएं और परंपराएं अलग-अलग हैं। आइए समझते हैं क्या है दोनों के बीच का अंतर और क्यों ये एक ही दिन मनाए जाते हैं।
गुरु पूर्णिमा: ज्ञान के प्रकाश का पर्व
गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का दिन है।
मूल कारण: यह दिन महर्षि वेद व्यास के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महर्षि वेद व्यास ने चारों वेदों, महाभारत और पुराणों की रचना की थी, इसलिए उन्हें समस्त मानव जाति का “प्रथम गुरु” माना जाता है। इसी कारण इस पूर्णिमा को “व्यास पूर्णिमा” भी कहते हैं।
महत्व: इस दिन शिष्य अपने गुरुजनों की पूजा करते हैं, उन्हें उपहार अर्पित करते हैं और उनसे ज्ञान तथा आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु के महत्व को समझाता है।
व्यापकता: गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे भारत में और भारतीय संस्कृति का पालन करने वाले विश्व के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है। यह किसी विशेष संप्रदाय से जुड़ा न होकर, गुरु-शिष्य परंपरा के सार्वभौमिक सम्मान का प्रतीक है।
मुड़िया पूर्णिमा: ब्रज की एक विशिष्ट परंपरा मुड़िया पूर्णिमा मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र, विशेषकर गोवर्धन में मनाया जाने वाला एक विशाल धार्मिक मेला और पर्व है।
मूल कारण: मुड़िया पूर्णिमा का संबंध चैतन्य महाप्रभु के गौड़ीय संप्रदाय के महान संत श्रीपाद सनातन गोस्वामी से है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही श्रीपाद सनातन गोस्वामी ने अपना शरीर त्यागा था (ब्रह्मलीन हुए थे)। उनके निधन पर उनके शिष्यों ने अपने शोक में सिर मुंडवाकर (मुंडन करवाकर) गोवर्धन परिक्रमा की थी और भजन-कीर्तन करते हुए शोभायात्रा निकाली थी। ‘मुड़िया’ शब्द इसी मुंडन की परंपरा से आया है।
महत्व: इस दिन लाखों श्रद्धालु, विशेषकर गौड़ीय संप्रदाय के अनुयायी और वैष्णव भक्त, गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा श्रीपाद सनातन गोस्वामी के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, और साथ ही गोवर्धन गिरिराज को साक्षात श्रीकृष्ण का स्वरूप मानकर उनकी पूजा का भी माध्यम है।
विशेषताएं: मुड़िया पूर्णिमा के दिन गोवर्धन में एक भव्य मेला लगता है। साधु-संत मुंडन करवाते हैं और शोभायात्रा में भाग लेते हैं। यह एक ऐसा अवसर होता है जब ब्रज की पूरी धरती कृष्ण भक्ति और गुरु भक्ति के रंग में रंग जाती है। एक ही दिन क्यों मनाए जाते हैं ये पर्व? गुरु पूर्णिमा और मुड़िया पूर्णिमा दोनों ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाए जाते हैं क्योंकि:
एक ही तिथि का संयोग: आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही महर्षि वेद व्यास का जन्मोत्सव होता है और संयोगवश इसी तिथि पर श्रीपाद सनातन गोस्वामी ने अपनी देह त्यागी थी।
गुरु तत्व का महत्व: भले ही दोनों के पीछे की कहानियां अलग हों, लेकिन दोनों ही पर्व गुरु तत्व के महत्व को दर्शाते हैं। गुरु पूर्णिमा जहाँ सभी गुरुओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है, वहीं मुड़िया पूर्णिमा एक विशिष्ट गुरु (सनातन गोस्वामी) के प्रति अगाध श्रद्धा और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का प्रतीक है।
ब्रज की विशिष्ट पहचान: ब्रज क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के रूप में मनाया जाना वहां की विशिष्ट संस्कृति और वैष्णव परंपराओं का हिस्सा है। यह दर्शाता है कि कैसे एक ही तिथि पर देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थानीय मान्यताओं और इतिहास के अनुसार पर्वों को अलग-अलग रूप दिए जाते हैं। इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा ज्ञान और सम्मान का सार्वभौमिक पर्व है, जबकि मुड़िया पूर्णिमा ब्रजभूमि में श्रीपाद सनातन गोस्वामी की स्मृति में मनाया जाने वाला एक विशिष्ट श्रद्धा और भक्ति का उत्सव है, जो गोवर्धन परिक्रमा के साथ जुड़ा हुआ है। दोनों ही पर्व आषाढ़ पूर्णिमा के पावन अवसर पर मनाए जाते हैं, जो गुरु के महत्व को रेखांकित करते हैं।