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New Delhi : एआईडीसीएफ की जीएसटी राहत की मांग: क्या टैक्स में कटौती भारत के केबल टीवी जीवनरेखा को बचा सकती है?, उद्योग के संकट, उपभोक्ता पर असर और नीतिगत रास्ते पर विशेष रिपोर्ट

New Delhi (डॉ. अनिल कुमार सिंह, पादक–STAR Views एवं संपादकीय सलाहकार–Top Story) : भारत का केबल टेलीविजन उद्योग संकट की स्थिति में है और अब उसने सरकार से सीधी राहत मांगी है। ऑल इंडिया डिजिटल केबल फेडरेशन (AIDCF), जो देश के डिजिटल मल्टी-सिस्टम ऑपरेटरों (MSOs) का शीर्ष संगठन है, ने सरकार से अपील की है कि केबल टीवी सेवाओं पर जीएसटी दर 18% से घटाकर 5% की जाए।

यह मांग प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के “नेक्स्ट-जेनरेशन जीएसटी सुधारों” की दृष्टि के अनुरूप रखी गई है, जिनका उद्देश्य टैक्स संरचना को सरल बनाना, दरों को तर्कसंगत करना और नागरिकों पर कर बोझ कम करना है।

एआईडीसीएफ ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) को औपचारिक रूप से पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि इस विषय को आगामी जीएसटी परिषद की बैठक में शामिल किया जाए।

एआईडीसीएफ के महासचिव श्री मनोज पी. छंगाणी कहते हैं:

“केबल टीवी सिर्फ मनोरंजन नहीं है, यह भारत की सामाजिक संरचना का हिस्सा है। छोटे कस्बों और ग्रामीण परिवारों में यह साझा माध्यम है, जिसके जरिए शिक्षा, जानकारी और संस्कृति घर-घर तक पहुँचती है। अगर जीएसटी दर को 5% किया जाता है तो यह उपभोक्ताओं का बोझ कम करने के साथ-साथ लाखों रोजगारों की रक्षा करेगा और इस उद्योग को बचाएगा।”

क्यों अहम है यह मुद्दा

एआईडीसीएफ ने अपनी मांग को तीन आधारों पर टिका रखा है: घरेलू पहुँच, रोज़गार और सस्ती सेवा।
• व्यापकता और पहुंच: केबल टीवी आज भी देश के 6.4 करोड़ से अधिक घरों तक पहुँचता है।
• रोज़गार का आधार: यह क्षेत्र सीधे तौर पर लगभग 10–12 लाख लोगों की आजीविका से जुड़ा है, जिसमें एमएसओ और स्थानीय केबल ऑपरेटर (LCOs) शामिल हैं।
• सस्ती सेवा का संकट: चैनल दरों में बार-बार वृद्धि और बढ़ती सैटेलाइट लागत से उपभोक्ताओं के बिल महंगे होते जा रहे हैं।

एआईडीसीएफ का कहना है कि ओटीटी प्लेटफार्म (स्ट्रीमिंग ऐप्स) जो कई बार नियामकीय और कर ढांचे से बाहर काम करते हैं, अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहे हैं। इस स्थिति में 18% का टैक्स भार केबल टीवी को और असुरक्षित बना रहा है।

18% बनाम 5% का गणित

एआईडीसीएफ का मानना है कि जीएसटी 18% से घटाकर 5% करने से:

1. उपभोक्ताओं के मासिक बिल सीधे सस्ते होंगे।
2. एमएसओ और एलसीओ के पास वर्किंग कैपिटल राहत आएगी।
3. वे अपनी नेटवर्क क्षमता का उपयोग कर वायर्ड ब्रॉडबैंड विस्तार कर सकेंगे।
4. डिजिटल इंडिया मिशन को नई गति मिलेगी।
5. एक समान अवसर वाला माहौल बनेगा, ताकि ओटीटी जैसी सेवाओं से मुकाबला संभव हो।

आम घर की हकीकत: आदत और बजट

भारत के लाखों परिवारों में केबल टीवी एक स्थिर और भरोसेमंद सेवा है। सीमित बजट वाले उपभोक्ता इसे चुनते हैं क्योंकि यह निश्चित कीमत पर दर्जनों चैनल उपलब्ध कराता है।

लेकिन जैसे-जैसे चैनल दरें बढ़ रही हैं और ऑपरेटर मजबूरी में वह बोझ उपभोक्ताओं तक पहुँचा रहे हैं, केबल टीवी का यह सस्ता विकल्प धीरे-धीरे महंगा हो रहा है। एआईडीसीएफ का तर्क है कि अगर टैक्स में राहत मिल जाए तो यह दबाव कम होगा और उपभोक्ता पलायन रुकेगा।

उद्योग की आंतरिक चुनौतियाँ

• चैनल दरों में लगातार बढ़ोतरी
• ऑपरेटरों की घटती मार्जिन
• अनुचित प्रतिस्पर्धा करने वाले स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म
• उच्च वितरण और सैटेलाइट लागत
• तकनीकी उन्नयन पर बढ़ता खर्च

एआईडीसीएफ का कहना है कि 5% जीएसटी राहत इस उद्योग को ऑक्सीजन देने जैसा होगा।

डिजिटल इंडिया से जुड़ाव

फेडरेशन का कहना है कि अगर टैक्स बोझ घटेगा तो एमएसओ और एलसीओ ब्रॉडबैंड सेवाओं में निवेश बढ़ा पाएंगे।
• यह ग्रामीण-शहरी डिजिटल अंतर को कम करेगा।
• इंटरनेट की सस्ती पहुंच सुनिश्चित करेगा।
• स्थानीय रोजगार को स्थिर बनाएगा।

यानी, टैक्स राहत से केवल टीवी नहीं, बल्कि इंटरनेट क्रांति भी तेज होगी।

नीतिगत प्रक्रिया

जीएसटी दरों पर अंतिम निर्णय जीएसटी परिषद का होता है। एआईडीसीएफ की चुनौती यही है कि वह यह साबित करे कि:
• उपभोक्ताओं को इसका सीधा लाभ मिलेगा।
• लाखों रोजगार बचेंगे।
• और सरकार का डिजिटल इंडिया लक्ष्य तेज होगा।

अगर 5% लागू हुआ तो फायदे

1. बिल राहत: मासिक बिल तुरंत कम होंगे।
2. बेहतर नेटवर्क: ऑपरेटर अपने नेटवर्क सुधार पर निवेश कर पाएंगे।
3. ब्रॉडबैंड बंडलिंग: टीवी + इंटरनेट पैकेज सस्ते होंगे।
4. छोटे ऑपरेटरों की मजबूती: एलसीओ की वर्किंग कैपिटल की समस्या हल होगी।

सरकार के सामने सवाल

• क्या इससे सरकार का कर राजस्व घटेगा?
• क्या इसका फायदा वाकई उपभोक्ता तक पहुँचेगा?
• क्या अन्य सेक्टर भी इसी तरह की राहत की मांग करेंगे?

सामाजिक आयाम

भारत में केबल टीवी अब भी एक साझा अनुभव है। गांवों और कस्बों में लोग एक साथ टीवी देखते हैं – यही इसकी सांस्कृतिक ताकत है। एआईडीसीएफ का तर्क है कि टैक्स राहत केवल एक उद्योग नहीं बल्कि सामाजिक एकजुटता को बचाने की भी जरूरत है।

हितधारक कौन-कौन

• उपभोक्ता: बिल कम होंगे।
• एलसीओ: वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी।
• एमएसओ: निवेश और नेटवर्क सुधार संभव होंगे।
• सरकार: अल्पकालिक राजस्व हानि, लेकिन दीर्घकालिक लाभ संभव।
• प्रसारक: सदस्यता स्थिर रहेगी।

आने वाले हफ्तों में नज़र रखने योग्य बातें

1. क्या जीएसटी परिषद इस मुद्दे को औपचारिक एजेंडे में शामिल करती है?
2. क्या एआईडीसीएफ अपने तर्कों को जमीनी आंकड़ों के साथ पेश करेगा?
3. क्या बीच का कोई रास्ता निकलेगा – जैसे सीमित अवधि की राहत?
4. क्या सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि लाभ सीधे उपभोक्ता तक पहुँचे?

निष्कर्ष

एआईडीसीएफ की यह मांग केवल एक टैक्स कटौती की अपील नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक दांव है जिससे केबल टीवी को जीवित रखा जा सके और उसकी नेटवर्क क्षमता का उपयोग कर डिजिटल इंडिया को गति दी जा सके।

अगर सरकार इस मांग को मान लेती है, तो यह न केवल करोड़ों परिवारों के मासिक बजट को राहत देगा बल्कि लाखों छोटे ऑपरेटरों और कर्मचारियों की जीविका सुरक्षित करेगा।

सवाल यही है कि क्या सरकार अल्पकालिक राजस्व हानि को नजरअंदाज कर दीर्घकालिक डिजिटल और सामाजिक लाभ को प्राथमिकता देगी?

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