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नई दिल्ली: ट्रांसजेंडर की सुविधा के लिए विशेषज्ञों ने तैयार किया प्रारूप

नई दिल्ली: -ट्रांसजेंडर की सुविधा के लिए 2024 में जारी एसओपी के लिए सुझाव तैयार

नई दिल्ली, 8 मई : अब तक करीब 150 लोगों की व्यक्तिगत पहचान सुनिश्चित करने वाले एम्स दिल्ली ने, ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य सेवा के लिए विकसित एसओपी को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुरू कर दी है।

इस संबंध में एम्स ने डीजीएचएस और स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से राष्ट्रीय परामर्श कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य सेवा संबंधी एसओपी पर कार्यान्वयन के लिए चर्चा की गई। इस अवसर पर निदेशक डॉ एम श्रीनिवास, डॉ विवेक दीक्षित और डॉ क्षितिजा सिंह समेत आरएमएल, सफदरजंग और लेडी हार्डिंग अस्पताल सहित विभिन्न संस्थानों के 100 से ज्यादा विशेषज्ञ मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ मनीष सिंघल ने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 2019 में ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य सेवा के लिए एसओपी बनाई थी जिसे 2024 में जारी किया गया था।

इस एसओपी या गाइड लाइन के आधार पर सरकारी अस्पतालों में ट्रांसजेंडर समुदाय इलाज के लिए स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की जानी थी। जिसमें ट्रांसजेंडर के लिए आर्थिक मदद से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की बात शामिल है। इसके अलावा प्लास्टिक सर्जरी, सामान्य सर्जरी, एंडोक्राइनोलॉजी, स्त्री रोग, मनोचिकित्सा, मनोविज्ञान और बाल रोग विभाग भी स्थापित किए जाने थे लेकिन तकनीकी खामी या अस्पष्टता के चलते एसओपी को सरकारी अस्पतालों में अक्षरशः लागू नहीं किया जा सका।

डॉ सिंघल ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए उस की व्यक्तिगत पहचान सबसे जरूरी होती है। ऐसे में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिए लिंग परिवर्तन सर्जरी या लिंग-पुष्टि सर्जरी सबसे ज्यादा अहमियत रखती है। यह सामान्य सर्जरी से बिलकुल अलग और दीर्घकालिक प्रक्रिया होती है। इसमें व्यक्ति को पहले मनोचिकित्सक से परामर्श लेना होता है। जो उसके लिंग परिवर्तन संबंधी विचार या फैसले का आकलन करते हैं। फिर उसे हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी दी जाती है जो करीब एक साल तक चलती हैं। इसके बाद लिंग परिवर्तन सर्जरी को अंजाम दिया जाता है।

डॉ सिंघल ने कहा कि ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य देखभाल के लिए विकसित एसओपी, कई मामलों में मूक है। जिसके चलते ट्रांसजेंडर को चिकित्सा लाभ नहीं मिल पाता है। एसओपी में स्पष्टता के अभाव में ट्रांसजेंडर, आयुष्मान भारत हेल्थ कार्ड से भी इलाज नहीं करवा पाते हैं। इसलिए हमने 100 से ज्यादा विशेषज्ञों के साथ चर्चा करके एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है जो केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी। ताकि ट्रांसजेंडर समुदाय को स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में उचित उपचार मिल सके।

क्या है ट्रांसजेंडर ?
ट्रांसजेंडर वे व्यक्ति होते हैं जिनके लिंग की पहचान जन्म के समय दिए गए लिंग से मेल नहीं खाती है। वहीं कुछ नॉन बाइनरी होते हैं। ये ऐसे लोग होते हैं जो पुरुष या महिला में से किसी के साथ भी खुद को पूरी तरह से जोड़ नहीं पाते हैं। बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 4.88 लाख ट्रांसजेंडर हैं जो पहचान की समस्या से जूझ रहे हैं।

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