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नई दिल्ली: कविता (महिला दिवस 2025)

नई दिल्ली: कविता (महिला दिवस 2025)

नई दिल्ली, 9 मार्च :
विधाता की अद्‌भुत कृति
संरक्षित है जिससे पुरातन संस्कृति
वIणी में जिसके सरस्वती
कहलाती है जो सौभाग्यवती
सहनशीलता की है प्रतिमूर्ति
नहीं हो सकती जिसकी कोई प्रतिकृति
घर में है जिससे सुख की अनुभूति
साक्षात देवी मां की है वो अनुकृति
किसी से भी कम नहीं यह बुद्धिमति
संभव न होती जिसके बिना किसी काम की परिणति
परमपिता ने मातृत्व का जो वरदान दिया
सृष्टि के सृजन में अपने कृतित्व से फिर अमूल्य योगदान दिया
एक -एक करके सभी नई ऊंचाइयों को आज पा ही लिया
अंसभव को संभव कर दुनिया को नया रास्ता दिखा ही दिया
जल, थल नभ की तो बात ही क्या ?
अंतरिक्ष का सीना भी इसने फाड़ दिया
कोई एक ठिकाना नहीं ऐसा, महिला से अछू‌ता हो ऐसा
आज की नारी , सब पर भारी
ठान लें जब ये सारी की सारी
हिल जाए फिर दुनिया सारी
शिक्षित हुई ,आत्मनिर्भर हुई
सशक्त हुई ,समृद्ध हुई
कोई एक दिवस नहीं है निर्धारित,
सभी दिवस महिलाओं को है समर्पित
सभी समझे इसका सही प्रायोजन
और फिर हो
“महिला दिवस 2025” का आयोजन

-डॉ कुसुम मीणा, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली

ममूटी ने कहा कि उन्हें ‘मेगास्टार’ की उपाधि पसंद नहीं है, उन्हें लगता है कि उनके जाने के बाद लोग उन्हें याद नहीं रखेंगे

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