
नई दिल्ली, 16 मई : देश में तंबाकू, शराब और सुपारी सेवन के चलते ओरल कैंसर के मामलों में तेज गति से इजाफा हो रहा है। इसके चलते प्रतिवर्ष हजारों पुरुष व महिलाएं ना सिर्फ अपनी बेशकीमती जान गंवा रहे हैं। बल्कि अपने आश्रितों के भविष्य को भी अंधकार में धकेल रहे हैं।
दरअसल, देश में तंबाकू उत्पादों की व्यापक उपलब्धता और सेवन के कारण अनुमानतः प्रतिवर्ष लगभग 77,000 नए ओरल कैंसर के मामले सामने आते हैं। इनमें से प्रतिवर्ष लगभग 52,000 लोगों की मौत हो जाती हैं। एम्स दिल्ली के डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर की एडिशनल प्रोफेसर दीपिका मिश्रा ने बताया कि ओरल कैंसर से मौत होने के पीछे इस कैंसर की पहचान लास्ट स्टेज में होना है। अगर मरीज में पनप रहे कैंसर की पहचान फर्स्ट स्टेज या सेकंड स्टेज में ही हो जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती है।
ऐसे ही मरीजों की सुविधा के लिए एम्स दिल्ली ने आरोग्य आरोहण ऐप का नया संस्करण लॉन्च किया है। जो चंद सेकंड में ना सिर्फ ओरल कैंसर की सटीक पहचान कर सकता है। बल्कि संबंधित व्यक्ति के रोग के स्तर के मुताबिक उपचार के लिए अस्पताल का पता भी बताता है। इस एआई टूल में नई विशेषताओं को जोड़ने का काम भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु और आर्ट पार्क ने किया है। डॉ. मिश्रा ने बताया कि आरोग्य आरोहण ऐप के नए संस्करण में करीब दो लाख तस्वीरों का डेटा एकीकृत किया गया है जिनमें ओरल कैंसर से पीड़ित मरीजों के मुंह के अंदर और बाहर के फोटो, पैथोलोजिकल रिपोर्ट और एक्स रे शामिल हैं।
डॉ वरुण सूर्य ने बताया कि देश के कई हिस्सों में निशुल्क ओरल कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम चलाया जा रहा है। आशा बहनों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आरोग्य आरोहण ऐप के इस्तेमाल के बाबत प्रशिक्षित किया गया है। स्क्रीनिंग के लिए 30 वर्ष से अधिक आयु वाले ऐसे लोगों को चुना जाता है जो तंबाकू का सेवन करते हैं। आशा कार्यकर्ता इन लोगों के मुंह की फोटो अलग-अलग कोण से क्लिक करती है और सबमिट का बटन दबा देती हैं। चंद सेकंड में ही मोबाइल की स्क्रीन पर मरीज को ओरल कैंसर होने, नहीं होने और कैंसर की शुरुआत होने जैसे रिजल्ट आ जाते हैं। इस रिजल्ट के आधार पर ऐप मरीज के उपचार के सर्वोत्तम विकल्प भी सुझाता है।
उन्होंने बताया कि ओरल कैंसर, भारत में पुरुषों में पाया जाने वाला पहला सबसे आम कैंसर बना हुआ हैं। वहीं, महिलाओं में ये तीसरा सबसे आम कैंसर बना हुआ है। इस मोबाइल ऐप के जरिये हम दिल्ली, यूपी, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु में स्थानीय आशा बहनों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सहयोग से 19400 लोगों की स्क्रीनिंग कर चुके हैं। परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। मोबाइल ऐप स्क्रीनिंग प्रोग्राम से ना सिर्फ कैंसर को शुरुआती स्टेज में रोका जा सकेगा। बल्कि पीड़ितों के जीवन को दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन भी बनाया जा सकेगा। इसमें मरीज को ना लैब टेस्ट कराने होंगे, ना बायोप्सी और ना ही इमेजिंग टेस्ट की जरूरत होगी।
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