
नई दिल्ली, 6 अप्रैल: गर्भाशय ग्रीवा कैंसर या सर्वाइकल कैंसर (सीसी) की सटीक जांच के लिए अब महिलाओं को दर्द भरी बायोप्सी की जगह ‘दर्द रहित बायोप्सी’ की सुविधा मिलने वाली है। जिसे एम्स दिल्ली के डॉक्टरों ने ‘लिक्विड बायोप्सी’ नाम दिया है।
दरअसल, सीसी दुनिया भर में महिलाओं में पाया जाने वाला चौथा सबसे आम कैंसर है, जो भारतीय महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। 2022 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सीसी के सालाना 1,27,526 मामले और 79,906 मौतें दर्ज हो रही हैं। यह आंकड़ा सीसी के अधिक प्रभावी निदान और निगरानी रणनीतियों की जरुरत पर जोर देता है। यानि सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए व्यापक स्क्रीनिंग के साथ व्यापक निगरानी भी बेहद जरुरी है।
एम्स के भीमराव अंबेडकर -एकीकृत अनुसंधान एवं कैंसर केंद्र के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ मयंक सिंह ने बताया कि ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) परीक्षण और साइटोलॉजी-आधारित स्क्रीनिंग जैसे नैदानिक तरीकों में प्रगति के बावजूद, कैंसर रोग के प्रारंभिक चरण का पता लगाने और इलाज करा चुके मरीजों में रोग की पुनरावृत्ति की निगरानी के बाबत इमेजिंग और पैप स्मीयर जैसी पारंपरिक विधियां न्यूनतम अवशिष्ट रोग की पहचान करने में विफल रहती हैं।
उन्होंने कहा, अक्सर इलाज के बाद कैंसर दोबारा लौट आता है और पहले से ज्यादा आक्रामक होकर मरीज को निशाना बनाता है। इसलिए मरीज को थोड़े -थोड़े अंतराल पर कैंसर की जांच करानी जरुरी होती है ताकि कैंसर के फिर से विकसित होने पर मरीज को उचित उपचार दिया जा सके। मगर, कैंसर जांच की प्रक्रिया दर्दनाक होने के चलते मरीज बायोप्सी कराने से कतराते हैं। ऐसे में लिक्विड बायोप्सी एक बेहतरीन विकल्प है, जिसमें रक्त परीक्षण से ही मरीज के शरीर में कैंसर सेल होने और ना होने का पता लगाया जा सकता है।
डॉ मयंक सिंह ने कहा, लिक्विड बायोप्सी तकनीक एक दर्द रहित प्रक्रिया है। इसमें ड्रॉपलेट डिजिटल पीसीआर (डीडीपीसीआर) जांच के साथ सेल-फ्री डीएनए (सीटीडीएनए) और परिसंचारी ट्यूमर डीएनए (सीटीडीएनए) का विश्लेषण करके प्रारंभिक कैंसर का पता लगाया जाता है। इस प्रक्रिया से सर्वाइकल कैंसर से जुड़ी मृत्यु दर में कमी लाने में मदद मिलेगी। यह रोग निगरानी के लिए एक आशाजनक विकल्प के रूप में उभरा है।
कैंसर के इलाज में अहम मार्कर
तकनीक को विकसित करने के लिए सर्वाइकल कैंसर के प्रथम चरण से लेकर चौथे चरण से पीड़ित 60 महिलाओं को चुना गया। इनमें 10 स्वस्थ महिलाएं भी शामिल थी। उपचार के तीन महीने बाद रक्त के नमूने एकत्र किए गए और रक्त के सैंपल से प्लाज्मा को अलग करके तुलनात्मक अध्ययन किया गया। अध्ययन के दौरान डीडीपीसीआर जांच करने पर पता चला कि इस कैंसर से पीड़ित मरीजों के ब्लड में सीएफ डीएनए का औसत सांद्रता 9.35 नैनोग्राम/माइक्रो लीटर पाया गया। इलाज के तीन माह बाद घटकर 9.35 नैनोग्राम/माइक्रो लीटर पर आ गया। वहीं स्वस्थ महिलाओं में इसका स्तर 6.95 नैनोग्राम/माइक्रो लीटर पाया गया। ऐसे में यह इस कैंसर के इलाज में अहम मार्कर हो सकता है।
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