
नई दिल्ली, 2 सितंबर : देश में एक तरफ पर्याप्त संख्या में नेत्रदान (कॉर्निया) नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ नेत्रदान में मिले 40% कॉर्निया विभिन्न कारणों से इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं जिसके चलते 12 लाख से अधिक दृष्टिहीन आज भी कॉर्निया प्रत्यारोपण होने की बाट जोह रहे हैं। जल्द ही ऐसे तमाम लोगों का इंतजार खत्म होने जा रहा है।
दरअसल, एम्स दिल्ली के डॉ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र (आरपी सेंटर) ने नेत्रदान में मिले खराब और संक्रमित कॉर्निया की सेहत में सुधार के लिए आईआईटी दिल्ली के साथ करार किया है। इसके तहत खराब हो चुके कॉर्निया की मरम्मत करके बायो इंजीनियर्ड कॉर्निया (बीईसी) विकसित किया गया है। इस कॉर्निया का पशु ट्रायल एक दृष्टिबाधित ‘खरगोश’ पर किया गया जिसकी आंखों की रोशनी बायो इंजीनियर्ड कॉर्निया के प्रत्यारोपण से वापस आ गई। अब इस कॉर्निया का मानव ट्रायल किया जा रहा है जिसके परिणाम सफल होने पर 40% खराब कॉर्निया का भी इस्तेमाल हो सकेगा और अधिक से अधिक नेत्रहीनों के जीवन में रोशनी लाई जा सकेगी।
क्यों खराब होता है नेत्रदान में मिला कॉर्निया?
आरपी सेंटर की मुखिया डॉ. राधिका टंडन ने मंगलवार को बताया कि नेत्रदान में मिलने वाले तमाम कॉर्निया स्वस्थ और गुणवत्तापूर्ण नहीं होते हैं। इनमें से काफी कॉर्निया सीरोलॉजी पॉजिटिव यानि एचआईवी एड्स और एचसीवी से संक्रमित पाए जाते हैं। वहीं कुछ कॉर्निया अन्य प्रकार के संक्रमण से प्रभावित होते हैं। इन सब वजहों से देशभर के आई बैंकों को मिले कुल कॉर्निया में से 60% का ही प्रत्यारोपण हो पाता है और करीब 40% कॉर्निया अप्रयुक्त रह जाता है, लेकिन एम्स और आईआईटी दिल्ली की नई तकनीक से इन संक्रमित कॉर्निया को ठीक किया जा रहा है ताकि कॉर्निया का अधिकतम इस्तेमाल हो सके और ज्यादा से ज्यादा दृष्टिहीनों को दृष्टि बहाल हो सके।