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कोविड लॉकडाउन में बच्चों की आंखों पर पड़ा बुरा असर

- देश में मायोपिया से पीड़ित लोगों की संख्या हुई 28 करोड़

नई दिल्ली, 11 अक्तूबर: कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान घर में बंद रहने के कारण लोगों में दृष्टि दोष और अंधापन बढ़ा है। इनमें वयस्कों के मुकाबले बच्चों और युवाओं की संख्या ज्यादा है। दरअसल, देशभर के लोग कोविड काल से तो बाहर आ गए हैं लेकिन कोविड के माहौल से बाहर नहीं आ पाए हैं।

एम्स दिल्ली के डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के सामुदायिक चिकित्सा के प्रभारी प्रो प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि कोविड काल में स्कूली बच्चे और युवा दृष्टि दोष से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। इसके नियंत्रण के लिए स्कूल जाने वाले बच्चों और युवाओं की नियमित जांच जरूरी है। ताकि उनकी आंखों की समस्या का पता लगाया जा सके और दृष्टि दोष पाए जाने पर चश्मे प्रदान किए जा सके। उन्होंने कहा, अक्सर बच्चे अपनी नजर की समस्या माता -पिता को नहीं बताते हैं। वे इसे सामान्य समझते हैं या अपरिहार्य कारणों से झिझकते हैं।

डॉ वशिष्ठ ने कहा ऐसे बच्चों और युवाओं की मदद के लिए स्कूल शिक्षकों को एक दिवसीय प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है ताकि वह बच्चे की आंखों की जांच कर सके। जरूरी होने पर ऑप्टोमेट्रिक मदद सुलभ करा सकें ।इस संबंध में शिक्षक की भूमिका प्रभावी साबित हो सकती है। वहीं, आरपी सेंटर के प्रोफेसर रोहित सक्सेना ने बताया कि बच्चों और युवाओं में मायोपिया की समस्या लाइफ स्टाइल में बदलाव के चलते तेजी से बढ़ रही है। लोग (बच्चे, युवा और व्यस्क) कोविड काल में पढ़ने-लिखने और मनोरंजन के साथ वर्क फ्रॉम होम के लिए मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर और लैपटॉप का प्रयोग करने के लिए मजबूर थे लेकिन कोविड का दौर ख़त्म होने के बावजूद अपनी आदतों में बदलाव नहीं ला सके हैं।

आज भी लोग 3 से 6 घंटे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट पर समय बिता रहे हैं। जो उनकी आंखों पर बुरा असर डाल रहा है। आंखों की सुरक्षा के लिए पढ़ने लिखने व मनोरंजन की आदतों में बदलाव लाया जाना जरुरी है। डॉ सक्सेना ने कहा, देश में अंधता और दृष्टि दोष से पीड़ित लोगों की संख्या अनुमानतः 20% हो चुकी है जो कोविड से पूर्व संपन्न सर्वे में 13-14% थी। यानी देश की 140 करोड़ आबादी में से 28 करोड़ लोग मायोपिया से पीड़ित हैं।

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