भारत

दुर्लभ बीमारी ने किया विकलांग मगर हौंसले बुलंद

-विकलांगता के बावजूद आयुषी, प्रशांत और तानिया ने नहीं मानी हार

नई दिल्ली, 25 जून : फ्रेड्रिक्स अटैक्सिया (एफआरडीए) पर शोध के लिए एफएआरए -यूएसए के साथ अलायंस करने वाले एम्स दिल्ली ने मंगलवार को जेएलएन के कांफ्रेंस रूम में इंटरेक्शन सत्र का आयोजन किया। इस दौरान एफआरडीए से पीड़ित मरीजों और उनके परिजनों ने भाग लिया। साथ ही अपने अनुभव साझा किए।

वर्ष 2016 से एम्स दिल्ली में अपना इलाज करवा रही, एमपी के भिंड जिले की आयुषी (26 वर्ष) ने बताया कि वह जब 14 वर्ष की थी, तब उन्हें चलने में दिक्कत होती थी। सीधी होकर नहीं चल पाती थी, हाथ कंपकंपाते थे। इस दौरान ऑर्थो के डॉक्टरों से इलाज कराया मगर फर्क नहीं पड़ा और साल 2016 में व्हील चेयर पर आ गई। इस दौरान अपनी पढ़ाई भी करती रही। अब नेट जेआरएफ की परीक्षा देनी थी लेकिन वो स्थगित हो गई। परीक्षा की नई तिथि घोषित होने के बाद उम्मीद है सफलता मिलेगी।

झारखण्ड के हजारीबाग जिले के रहने वाले प्रशांत (25 वर्ष ) ने बताया कि मुझे 16 वर्ष की उम्र में चलने फिरने में दिक्कत होने लगी थी। अब मैं पिछले 5 साल से व्हील चेयर का इस्तेमाल कर रहा हूं। एम्स में इलाज करवा रहा हूं। डॉक्टर के परामर्श से दवा ले रहा हूं और व्यायाम कर रहा हूं। हाल ही में ग्रेजुएशन पूरी की है और अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं।

ग्रेटर नोएडा की तानिया डबराल (24 वर्ष) भी एफआरडीए से पीड़ित हैं और 2011 से बीमार हैं। तानिया ने बताया कि वह चलते- चलते गिर जाती थी। आंखों में अक्सर दर्द और जलन रहती है लेकिन अपनी पढ़ाई जारी रखी। हाल ही में अपने जीवन और अनुभव को लेकर एक किताब ‘अनकहा’ भी लिखी है जो कमर्शियल वेबसाइट अमेजन पर उपलब्ध है।

वहीं, तानिया की मम्मी कीर्ति डबराल ने कहा कि मेरी बेटी बहुत प्रतिभाशाली थी। पढ़ाई में अव्वल रहती थी। चहकती रहती थी लेकिन एफआरडीए से पीड़ित होने के बाद अपने आप में सिमट गई है। अपने दैनिक कार्य भी खुद नहीं कर पाती है। ऐसे में मेरी सरकार से गुजारिश है कि वह एफआरडीए के मरीजों के लिए स्किल डेवलपमेंट कोर्स लाए ताकि वह स्वावलंबी बन सकें। साथ ही ऐसे पीड़ितों को एक दूसरे से मिलने जुलने की सुविधा मुहैया कराएं जिससे वह खुद को अकेला न समझें और जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ सकें।

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