
Delhi News : भारत-पाकिस्तान संघर्ष इस सप्ताह एक बार फिर तेज़ हो गया है, जिससे दक्षिण एशिया में अस्थिरता की नई आशंका जन्म ले रही है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा किए गए बर्बर हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत ठोस सैन्य जवाब दिया है। वहीं, पाकिस्तान द्वारा जम्मू, पंजाब और राजस्थान जैसे सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में भारी गोलाबारी की जा रही है। इस सैन्य गतिरोध के बीच यह स्पष्ट हो गया है कि कूटनीति अब भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि सैन्य रणनीति।

भारत की जवाबी कार्रवाई और रणनीतिक संदेश
लेखक डॉ. अनिल सिंह कहते है की यह टकराव केवल दो देशों की पारंपरिक रंजिश का प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि यह उस भारत की भूमिका को दर्शाता है जो आतंक के खिलाफ वैश्विक मंच पर निडर और स्पष्ट संदेश दे रहा है कि अब ‘नया भारत’ आतंक को बर्दाश्त नहीं करेगा।भारत ने पहलगाम हमले के जवाब में सटीक और मापी गई सैन्य कार्रवाई करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की। राफेल विमान और आधुनिक गाइडेड मिसाइलों से संचालित इस कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के लॉन्च पैड्स को नष्ट किया गया।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और टकराव को बढ़ाने की कोशिश
उन्होंने कहा महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने स्पष्ट कर दिया कि उसका लक्ष्य केवल आतंक का बुनियादी ढांचा है, पाकिस्तानी सेना या नागरिक नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को पूरी स्वतंत्रता दी है, लेकिन साथ ही यह संदेश भी दिया है कि भारत युद्ध नहीं चाहता पर आत्मरक्षा से पीछे नहीं हटेगा। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में सीमा पार भारी गोलीबारी और मिसाइल हमले शुरू कर दिए। जम्मू, सांबा और कुपवाड़ा क्षेत्रों में भारतीय नागरिक बंकरों में शरण लेने को मजबूर हैं। पाकिस्तान बार-बार आतंकी गतिविधियों से पल्ला झाड़ता रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब इस दोहरे चरित्र से परिचित हो चुका है।
संघर्ष के समय कूटनीति का महत्व
उन्होंने कहा यह प्रतिक्रिया दरअसल पाकिस्तान की विफल आंतरिक राजनीति, कट्टरपंथ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने की बौखलाहट का ही नतीजा है। ऐसे संकट के समय कूटनीति की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और राजनयिक तंत्र ने अमेरिका, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात और G20 देशों से समन्वय करते हुए यह सुनिश्चित किया कि भारत की कार्रवाइयाँ आत्मरक्षा की श्रेणी में आती हैं न कि आक्रामकता की।
आतंकवाद पर नियंत्रण
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अमेरिका के विदेश सचिव और अन्य वैश्विक शक्तियों ने भारत के रुख को समझा और पाकिस्तान को आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए कड़ा संदेश भी दिया। भारत ने वैश्विक कूटनीतिक मंचों पर अपनी बात पूरी दृढ़ता और पारदर्शिता से रखी यह इस बात का प्रतीक है कि अब भारत युद्ध के मैदान में ही नहीं, बल्कि कूटनीति के मंच पर भी नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है।
वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका
भारत ने अपनी कार्रवाई से यह संदेश दिया है कि वह आतंक के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने में सक्षम है और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करता है। इससे भारत की छवि एक जिम्मेदार और आत्मविश्वासी शक्ति के रूप में और मज़बूत हुई है। भारत ने पाकिस्तान के आम नागरिकों और सेना के बीच भेद किया है, यह बताने के लिए कि उसका संघर्ष आतंकवाद के खिलाफ है न कि एक राष्ट्र के खिलाफ। इससे भारत की नीति में मानवीय पक्ष भी उजागर होता है।
क्षेत्रीय संकट के वैश्विक प्रभाव
भारत-पाक संघर्ष केवल दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है। दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच यदि युद्ध होता है तो उसका प्रभाव वैश्विक व्यापार, मानवाधिकार, और ऊर्जा सुरक्षा पर भी पड़ेगा। इसके साथ ही भारत की आर्थिक और विकास योजनाओं के लिए सीमावर्ती शांति आवश्यक है। अतः यह ज़रूरी है कि कूटनीति और युद्ध दोनों को संतुलित किया जाए। यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि केवल सेना नहीं, कूटनीति भी उतनी ही प्रभावी हथियार है।
आगे का रास्ता क्या हो सकता है?
1. सीमावर्ती हॉटलाइन और वार्ता तंत्र को पुनः सक्रिय करें, ताकि संचार में भ्रम से टकराव की संभावना कम हो।
2. पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए रखें, जब तक वह आतंकी ढांचे को नष्ट नहीं करता, उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग किया जाए।
3. ट्रेक-2 डिप्लोमेसी’ को प्रोत्साहन दें। नागरिक समाज, बुद्धिजीवी और पूर्व अधिकारी अनौपचारिक संवाद से माहौल को शांत कर सकते हैं।
4. सीमावर्ती नागरिक सुरक्षा को प्राथमिकता दें। बंकर, मेडिकल सुविधा और त्वरित सूचना तंत्र को मजबूत किया जाए।
5. लंबी अवधि की आतंक विरोधी नीति बनाएं। केवल जवाबी हमला नहीं, बल्कि आतंक की जड़ों पर प्रहार हो। आर्थिक, साइबर और वैचारिक स्तर पर।