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Kanara Bank e-auction: कारोबारी को केनरा बैंक की ई-नीलामी ने छीन लिया 6 साल का समय और 100 करोड़ का नुकसान

Kanara Bank e-auction: कारोबारी को केनरा बैंक की ई-नीलामी ने छीन लिया 6 साल का समय और 100 करोड़ का नुकसान

रिपोर्ट: अभिषेक ब्याहुत

नई दिल्ली। ऑनलाइन नीलामी (e-auction) संपत्ति खरीदने का आसान तरीका लगता है, लेकिन गुवाहाटी के व्यापारी बलवान भामा के मामले ने Kanara Bank e-auction प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिए हैं। भामा, जो वैष्णो देवी ट्रेडर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं, ने केनरा बैंक की ई-नीलामी में जमीन खरीदी, लेकिन छह साल बीतने के बावजूद न तो उन्हें जमीन का वास्तविक कब्जा मिला और न ही असली दस्तावेज। मजबूरन उन्होंने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी पीड़ा साझा की।

मामला और नुकसान

भामा का आरोप है कि बैंक और कर्जदार संजीव जायसवाल के बीच मिलीभगत के कारण उन्हें ₹100 करोड़ से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ। मामला 9 सितंबर 2019 का है, जब भामा ने ब्रह्मपुत्र टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा गिरवी रखी गई जमीन का टुकड़ा खरीदा। जमीन का कुल क्षेत्रफल 2 बीघा, 4 कठा और 16 लेचा था और यह राष्ट्रीय राजमार्ग 37 के पास स्थित थी।

भामा ने 24 सितंबर 2019 को पूरा भुगतान किया और 1 अक्टूबर 2019 को बिक्री प्रमाणपत्र भी जारी हुआ। कानूनन उनकी कंपनी अब जमीन की वैध मालिक थी, लेकिन अगले छह सालों में जमीन का कब्जा नहीं मिला और मूल दस्तावेज भी नहीं मिले।

डीआरटी केस और फर्जी दस्तावेज

भामा का आरोप है कि नीलामी से पहले ही कर्जदार ने बैंक के साथ मिलकर डीआरटी में केस फाइल कर दिया, जिसे बैंक ने अदालत को नहीं बताया। परिणामस्वरूप, 3 अक्टूबर 2019 को डीआरटी ने यथास्थिति आदेश जारी कर जमीन पर कब्जा रोक दिया।

भामा ने फर्जी बिक्री विलेख और दस्तावेजों में छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया। नकली बिक्री विलेख में 2007 की तारीख दिखाई गई थी, जबकि स्टाम्प पेपर 2010 का था। फोरेंसिक और सरकारी सर्वे ने इसे फर्जी पाया, लेकिन बैंक ने अदालत में इसे वैध साबित करने की कोशिश की।

बैंक की चुप्पी और सरकारी नियमों की अनदेखी

भामा ने बताया कि जमीन खरीदने के बाद सात दिनों के भीतर मूल दस्तावेज मिलने थे। छह साल से भी ज्यादा समय बीतने के बावजूद दस्तावेज नहीं मिले। उन्होंने बैंक अधिकारियों से सैकड़ों बार मुलाकात की और कई पत्र भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

इसके अलावा, ₹15 करोड़ से ज्यादा के लोन डिफॉल्ट के बावजूद बैंक ने सीबीआई को सूचित नहीं किया, जबकि कानून के अनुसार यह अनिवार्य था। कर्जदार ने पैसे अपनी अन्य कंपनियों में निवेश किए, लेकिन किसी सरकारी एजेंसी ने जांच नहीं की।

OTS और विवाद का समाधान

अब बैंक और कर्जदार एकमुश्त निपटान (OTS) की पेशकश कर रहे हैं, जिसमें कर्जदार कर्ज का छोटा हिस्सा चुका कर जमीन अपने पास रख लेगा। भामा का कहना है कि कानून के अनुसार जमीन का मालिक अब भी खरीदार ही है।

इस पूरे विवाद में भामा का वित्तीय नुकसान ₹100 करोड़ से अधिक हो चुका है, जबकि बैंक ने उनके ₹20 करोड़ से ज्यादा जमा पैसे और ब्याज रोक रखा है।

Kanara Bank e-auction विवाद ने यह स्पष्ट किया कि ऑनलाइन नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय प्रणाली की अनदेखी गंभीर आर्थिक नुकसान का कारण बन सकती है। भामा का मामला बैंकिंग और कानूनी प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है और इसे ध्यान में रखते हुए सुधार की आवश्यकता है।

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