ब्रेन डेड बुजुर्ग के लिवर से युवक को मिला नया जीवन
-लिवर ट्रांसपोर्ट करने के लिए बनाया ग्रीन कॉरिडोर, 28.4 किमी की दूरी सिर्फ 44 मिनट में की तय

नई दिल्ली, 13 मई : एक ब्रेन डेड बुजुर्ग के परिजनों के स्वैच्छिक अंग दान से एक 30 वर्षीय युवक को नया जीवन मिलने की जानकारी सामने आई है। युवक लिवर सिरोसिस से पीड़ित था जिसके चलते उसका लिवर फेल होने के कगार पर पहुंच चुका था। ऐसे में मरीज की जान बचाने के लिए फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग एवं मैक्स अस्पताल साकेत ने चिकित्सकीय व प्रबंधकीय तालमेल करने का फैसला किया और सड़क दुर्घटना के शिकार बुजुर्ग का लिवर शालीमार बाग से साकेत तक पहुंचाया। वहां मौजूद विशेषज्ञों ने युवक के शरीर में लिवर का प्रत्यारोपण किया और उसकी जान बचाने में सफलता प्राप्त की।
दरअसल, एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल 76 वर्षीय बुजुर्ग को मई के पहले हफ्ते में फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग में उपचार के लिए लाया गया था। उनके सिर में गंभीर चोटें लगी हुई थीं और मुंह से भी खून बह रहा था। क्लॉट और सूजे हुए चोटिल दिमाग के लिए खोपड़ी के दाएं हिस्से में अतिरिक्त जगह बनाने वाली हड्डी को हटाने के लिए तत्काल ही दिमाग की सर्जरी की गई। मगर, अलग-अलग तरह के प्रयासों एवं दवाओं के बावजूद, मरीज अपनी चोटों से उबर नहीं पाया और ब्रेन हैमरेज से उसकी मौत हो गई।
इसके बाद मृतक के परिवार ने जबरदस्त साहस का परिचय दिया और लिवर सिरोसिस से पीड़ित युवक को मृतक का लिवर दान करने की सहमति प्रदान की। फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने करीब 2 घंटे 35 मिनट में लिवर, कॉर्निया व टिश्यू को सुरक्षित निकाल लिया। मगर ह्रदय, किडनी व अन्य अंग उपयुक्त न होने के चलते शरीर में ही छोड़ दिए। मृतक के लिवर को शालीमार बाग से लेकर साकेत तक ट्रांसपोर्ट करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। इस दौरान 28.4 किमी की दूरी सिर्फ 44 मिनट में पूरी की गई।
फोर्टिस हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग की अध्यक्ष डॉ. सोनल गुप्ता ने कहा, हमारे डॉक्टरों की टीम और पुलिस के बीच के आपसी सहयोग की वजह से ही यह जीवन बचाने वाला अंगदान संभव हो पाया है। हमें उम्मीद है कि यह बेहतरीन उदाहरण और भी लोगों को अंगदान करने के लिए और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करेगा। डायरेक्टर दीपक नारंग ने कहा, अपार दुख के बीच उदारता दिखाने के लिए हम परिवार के ऋणी रहेंगे। अन्य लोगों से आग्रह है कि वे भी आगे आएं और अंगदान के लिए रजिस्ट्रेशन कराएं, ताकि ज्यादा लोगों का जीवन बचाया जा सके।
एक अनुमान के मुताबिक देश में हर वर्ष लगभग 5 लाख लोगों को अंग संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है लेकिन इनमें से 2-3 फीसदी लोगों को ही ट्रांसप्लांट कराने का मौका मिल पाता है। जिसके चलते हर वर्ष सैकड़ों लोग ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा में ही दम तोड़ देते हैं। इसके पीछे अंगदान के प्रति समाज में व्याप्त गलत धारणाओं के साथ जागरूकता की कमी प्रमुख वजह है, जिसके चलते हर बीतते वर्ष के साथ दान किए जाने वाले अंगों की संख्या और ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की संख्या के बीच अंतर बढ़ता ही जा रहा है। वहीं, एनओटीटीओ (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन) के मुताबिक, जब किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है, तो अस्पताल परिवार के लोगों से अंगदान के बारे में चर्चा कर सकता है।