
नई दिल्ली, 12 जुलाई : मानसून के मौसम में भीगने के चलते खांसी, जुकाम, एलर्जी और त्वचा रोग जैसी संक्रामक चुनौती तो हर साल आती है लेकिन इस साल मेलियोडोसिस या व्हिटमोर रोग बड़ी चुनौती बन सकता है। यह आमतौर पर बारिश के पानी में भीगने के कारण नहीं बल्कि जलजमाव के चलते एकत्रित गंदे पानी में गीले होने के कारण हो सकता है।
वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. रुशिका सक्सेना ने शुक्रवार को बताया कि मेलियोडोसिस एक संक्रामक रोग है जो बर्कहोल्डरिया स्यूडोमैली जीवाणु के कारण होता है। आमतौर पर यह रोग उत्तरी आस्ट्रेलिया, चीन और भारत के उत्तरपूर्व व दक्षिणी राज्यों सहित दक्षिण -पूर्व एशिया के देशों में पाया जाता है। हालांकि, यह रोग अबतक उत्तर भारत में रिपोर्ट नहीं हुआ है लेकिन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की स्टडी में मेलियोडोसिस के जीवाणु दक्षिणी दिल्ली की मिट्टी में पाए गए हैं। यह स्टडी बीते साल मार्च माह में राजधानी दिल्ली के अलग -अलग इलाकों से लिए गए सैंपल पर की गई थी।
डॉ. रुशिका ने बताया कि मेलिओडोसिस का बैक्टीरिया मिट्टी और पानी में पाया जाता है जो बरसात के दौरान जलजमाव वाले स्थानों पर एक्टिव हो सकता है। यह रोग बैक्टीरिया से दूषित धूल में सांस लेने से और दूषित मिट्टी से त्वचा के घिसे हुए हिस्से या घाव के संपर्क में आने से हो सकता है। संक्रमण सबसे ज्यादा बारिश के मौसम में होता है। मेलिओडोसिस के लक्षण हल्के ब्रोंकाइटिस से लेकर गंभीर निमोनिया तक हो सकते हैं और इसमें बुखार , सिरदर्द, भूख न लगना, खांसी, सीने में दर्द और सेप्टीसीमिया शामिल हो सकते हैं। यह अक्सर टीबी व स्यूडोमोनास संक्रमण जैसा दिखता है। उन्होंने बताया कि मेलिओडोसिस को लेकर सफदरजंग अस्पताल में आयोजित दो दिवसीय चिकित्सकीय चर्चा में देश के 15 बड़े अस्पतालों के विशेषज्ञों ने भाग लिया।
मेलिओडोसिस का खतरा किसे है?
मेलिओडोसिस स्वस्थ वयस्कों और बच्चों में दुर्लभ है। बैक्टीरिया के संपर्क में आने वाले ज्यादातर लोग बीमार नहीं पड़ते। मधुमेह, कैंसर, फेफड़े और गुर्दे की बीमारी जैसी दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोग और जो लोग बहुत ज्यादा शराब पीते हैं, उन्हें बीमार होने का सबसे ज्यादा जोखिम होता है।
रोग की सही पहचान से इलाज संभव
मेलिओडोसिस अक्सर टीबी व स्यूडोमोनास संक्रमण जैसा दिखता है। इसकी पहचान ब्लड, बलगम, मूत्र और मवाद के कल्चर टेस्ट से हो सकती है जिससे इसका निदान करना आसान हो जाता है। इसके इलाज के लिए मरीज को करीब दो से छह महीने तक एंटीबायोटिक दवा खानी पड़ती है।
14 राज्यों में टास्क फोर्स
भारत में मेलिओडोसिस के बढ़ते मामलों के मद्देनजर देश की नैदानिक और प्रयोगशाला जांच को मजबूत करने के लिए आईसीएमआर ने एक टास्क फोर्स बनाई है। जो 14 राज्यों के 15 केंद्रों में अलग -अलग काम कर रही है। इसका रेफरल केंद्र कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (केएमसी), मणिपाल में है, जबकि नोडल केंद्र क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, डिब्रूगढ़ असम में है। अन्य केंद्रों में नई दिल्ली (सफदरजंग अस्पताल), अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, असम, सिक्किम, त्रिपुरा, केरल आदि शामिल हैं।