बच्चों की इंटरसेक्स सर्जरी के लिए गाइडलाइंस बनाएगी एम्स की हाई पावर कमेटी
-एम्स दिल्ली के निदेशक ने देश के जाने -माने 23 डॉक्टरों की समिति का किया गठन

नई दिल्ली, 17 मई : जन्मजात यौन विकास विकारों (डीएसडी) के साथ जन्मे बच्चों की लैंगिक पहचान सुनिश्चित करने के लिए इंटरसेक्स सर्जरी एक अनिवार्य प्रक्रिया है लेकिन एक न्यायिक आदेश के चलते बच्चों को अपनी यथेष्ट पहचान से वंचित होना पड़ रहा है। ऐसे बच्चों की सुविधा के लिए एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक सर्जन के साथ मिलकर 23 सदस्यीय हाई पावर कमेटी का गठन किया है जो न सिर्फ इंटरसेक्स सर्जरी के लिए गाइडलाइंस तैयार करेगी। बल्कि केंद्र सरकार के विचारार्थ स्वास्थ्य मंत्रालय भी भेजेगी।
यह जानकारी एम्स दिल्ली के बाल शल्य चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉ संदीप अगरवाला ने शुक्रवार को दी। उन्होंने बताया कि दुनिया भर में बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग यौन विकास विकारों (डीएसडी) के साथ पैदा हुए बच्चों की सर्जिकल जरूरतों को पूरा करते हैं। ये बच्चे आमतौर पर ‘ट्रांसजेंडर’ नहीं होते बल्कि शरीर के अंदरूनी और बाहरी अंगों में समानता न होने जैसी स्थिति के शिकार होते हैं। डीएसडी के साथ जन्मे बच्चों के विकार सर्जरी से दूर किए जा सकते हैं।
डॉ अगरवाला ने कहा, डीएसडी से पीड़ित बच्चे ऐसे बच्चे होते हैं जिनके क्रोमोसोम और अंदरूनी अंग तो उन्हें महिला या पुरुष के रूप में पहचान देते हैं लेकिन बाहरी अंग उनकी पहचान से मेल नहीं खाते हैं। इनमें लड़कों में स्तनों का विकास होना, मूत्र पथ में संक्रमण होना, जननांग पथ से असामान्य रक्तस्राव होना या मासिक धर्म तरल पदार्थ का रुकना, सामान्य रूप से पेशाब करने में असमर्थ होना और आवाज में बदलाव आना आदि विकार प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा, ऐसी परिस्थितियों में तत्काल उपचार की जरुरत होती है जिसका निदान न होने पर बच्चे को चिकित्सीय समस्याएं हो सकती हैं। लिहाजा, सर्जरी का निर्णय लेने के लिए बच्चे के बालिग होने तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती। दरअसल, तमिलनाडु उच्च न्यायालय ने वर्ष 2022 में एक आदेश जारी किया था कि 18 वर्ष की आयु से पहले बच्चों की इंटरसेक्स सर्जरी नहीं की जा सकती। लेकिन डीएसडी विकारों से पीड़ित बच्चों की सुविधा और पहचान के लिए कम उम्र में ही सर्जरी आवश्यक है।
इस संबंध में आम सहमति बनाने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है जिसमें बेंगलुरु, पुडुचेरी, चेन्नई, मुंबई, जबलपुर, कोलकाता, दिल्ली के शल्य चिकित्सकों, मनोचिकित्सकों, एंडोक्रिनोलॉजी विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। बीते 11 मई को एम्स दिल्ली में आयोजित बैठक में समिति ने न सिर्फ बच्चे के स्वास्थ्य के अधिकार को दोहराया। बल्कि बच्चे की चिकित्सकीय देखभाल और सर्जरी की जरूरतों को भी जरूरी बताया।