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अत्यधिक चर्बी, मोटापा, मधुमेह व गतिहीन जीवन शैली लिवर के लिए हानिकारक : AIIMS

-हेपेटाइटिस से बचाव के लिए जीवन में एक बार टीकाकरण कराना जरुरी

नई दिल्ली, 29 जुलाई : यकृत या लिवर शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है जो 500 से अधिक प्रकार के कार्यों को अंजाम देता है। लेकिन थोड़ी सी असावधानी आपको हेपेटाइटिस वायरस से संक्रमित कर सकती है जो लिवर में सूजन का कारण बनने के साथ ही लिवर फेल होने की वजह भी बन सकती है।

यह जानकारी एम्स दिल्ली के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के मुखिया प्रोफेसर डॉ प्रमोद गर्ग ने विश्व हेपेटाइटिस दिवस के अवसर पर सोमवार को दी। उन्होंने बताया कि लिवर शरीर के समस्त रक्त को छानने से लेकर विषैले पदार्थों (शराब और नशीली दवा) को तोड़ने और पित्त नामक तरल पदार्थ का उत्पादन करने तक की प्रक्रिया शामिल है। यह वसा को पचाने और अपशिष्ट पदार्थ को मल के रूप में बाहर निकालने में मदद करता है। लेकिन गंदा पानी, अस्वच्छ भोजन, संक्रमित रक्त, असुरक्षित यौन संबंध आदि के चलते हेपेटाइटिस संक्रमण हो जाता है जो लिवर के कार्यों को प्रभावित करता है। वहीं, शराब का सेवन, अत्यधिक चर्बी, मोटापा, मधुमेह व गतिहीन जीवन शैली व्यक्ति के लिवर के लिए समस्याएं पैदा करते हैं। इस अवसर पर डॉ शालीमार, डॉ रोहन मलिक, डॉ पार्थ हलधर भी मौजूद रहे।

डॉ शालीमार ने बताया कि लिवर की सूजन को ‘हेपेटाइटिस’ कहा जाता है। यह एक्यूट (अल्प अवधि) या क्रोनिक (लंबी अवधि) की हो सकती है। एक्यूट हेपेटाइटिस के रोगियों में आमतौर पर पीलिया होता है और उनमें मतली, उल्टी एवं भूख न लगना जैसे लक्षण दिखते हैं। अधिकांश मामलों में एक्यूट हेपेटाइटिस से रिकवरी आमतौर पर 4 से 6 सप्ताह के भीतर हो जाती है। अगर वायरल संक्रमण शरीर में 6 महीने से अधिक समय तक बना रहता है, तो यह क्रोनिक सूजन का कारण बन सकता है और क्रोनिक लिवर रोग, सिरोसिस और लिवर के कैंसर के रूप में विकसित हो सकता है। कुछ रोगियों को बिना किसी लक्षण के क्रोनिक वायरल संक्रमण और लिवर रोग हो सकता है।

डॉ शालीमार के मुताबिक अगर व्यक्ति हेपेटाइटिस से संक्रमित हो गया है तो वह दीर्घावधि में लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है। यह वायरस मरीज के शरीर में धीरे -धीरे विकसित होता है और करीब 10 से 20 साल की अवधि में लिवर को सड़ा देता है या खराब कर देता है। सामान्यतया इसके कोई लक्षण भी सामने नहीं आते हैं। इससे बचाव के लिए छोटे बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाओं और वयस्कों को हेपेटाइटिस के टीके की तीन खुराक (छह महीने में) लेनी चाहिए। यह टीका जीवन में एक बार लगवाना बहुत जरुरी है। डॉ शालीमार ने बताया कि हेपेटाइटिस के प्रसार के पीछे डिस्पोजेबल सिरिंज का प्रयोग ना किया जाना भी एक बड़ा कारण हैं जिसके चलते यह रोग पंजाब व उत्तर पूर्व भारत के राज्यों में तेजी से फैल रहा है। वहां ज्यादातर लोग ड्रग्स या नशीली दवाएं लेने व अन्य वजहों से डिस्पोजेबल की बजाय सामान्य सिरिंज का प्रयोग करते हैं।

लिवर को प्रभावित करते हैं 5 हेपेटाइटिस वायरस
हेपेटाइटिस वायरल संक्रमण, दवाओं और शराब के कारण होता है। 5 मुख्य हेपेटाइटिस वायरस हैं जो लिवर रोग का कारण बन सकते हैं, अर्थात् हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई। हेपेटाइटिस ए और ई तीव्र हेपेटाइटिस का कारण बनते हैं। हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वायरस क्रोनिक लिवर रोग का कारण बनते हैं जो लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर और वायरल-हेपेटाइटिस से संबंधित मौतों का सबसे आम कारण हैं। हेपेटाइटिस ए और ई दूषित पानी के माध्यम से फैलते हैं। जबकि, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी के संक्रमण संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से होते हैं। उदाहरण के लिए, बिना जांचे रक्त आधान (ब्लड ट्रांसफ्यूजन), जन्म और प्रसव के दौरान मां से बच्चे में संक्रमण, असुरक्षित यौन व्यवहार और इंजेक्शन वाली दवा का उपयोग।

95% से अधिक रोगी दवा से हो जाते हैं ठीक
हेपेटाइटिस ए और ई के इलाज के लिए किसी विशिष्ट एंटी-वायरल दवा की आवश्यकता नहीं होती है। हेपेटाइटिस बी वायरस के उपचार में मौखिक गोलियां शामिल हैं जो शरीर में वायरस की प्रतिकृति को नियंत्रित करती हैं। जबकि हेपेटाइटिस बी वायरस के इलाज के लिए दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता होती है। हेपेटाइटिस सी वायरस के संक्रमण के लिए, एंटीवायरल दवाओं के साथ 3 महीने के उपचार से 95% से अधिक रोगी ठीक हो जाते हैं। लिवर में अत्यधिक चर्बी शरीर के अत्यधिक वजन यानी मोटापा, मधुमेह या एक गतिहीन जीवन शैली के कारण हो सकती है और अगर इसे ठीक नहीं किया जाता है, तो यह लंबे समय में लिवर को नुकसान पहुंचा सकती है। एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना- शराब से परहेज, एक स्वस्थ आहार, दैनिक व्यायाम और डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी संभावित लीवर विषाक्त दवा से परहेज करना एक स्वस्थ लिवर के लिए आवश्यक है।

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