Akhlaq Murder Case: अखलाक मॉब लिंचिंग केस में सरकार को झटका, मुकदमा वापसी की याचिका कोर्ट ने की खारिज

Akhlaq Murder Case: अखलाक मॉब लिंचिंग केस में सरकार को झटका, मुकदमा वापसी की याचिका कोर्ट ने की खारिज
नोएडा: दादरी के बिसाहड़ा गांव में वर्ष 2015 में हुई अखलाक मॉब लिंचिंग से जुड़े चर्चित मामले में अदालत ने राज्य सरकार को बड़ा झटका दिया है। फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) ने आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की सरकार की याचिका को आधारहीन और महत्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस गंभीर आपराधिक मामले में मुकदमा वापसी का कोई ठोस आधार नहीं बनता। अब इस केस में अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी।
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से दाखिल उस अर्जी पर विचार किया गया, जिसमें सरकार ने आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि यह मामला सार्वजनिक महत्व और गंभीर अपराध से जुड़ा है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। अदालत ने यह भी निर्देश दिए कि मामले की प्रतिदिन सुनवाई की जाएगी और अभियोजन पक्ष को आगे गवाहों के बयान दर्ज कराने होंगे।
कोर्ट ने पुलिस आयुक्त नोएडा और डीसीपी ग्रेटर नोएडा को निर्देश दिए कि यदि किसी भी गवाह को सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होती है, तो उसे तुरंत पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। अदालत का यह रुख गवाहों की सुरक्षा और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
अखलाक के परिवार की ओर से पैरवी कर रहे वकील युसुफ सैफी और अंदलीब नकवी ने बताया कि अदालत ने सरकार की अर्जी को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए न्याय की उम्मीद को मजबूत करता है।
सुनवाई के दौरान अदालत परिसर में मौजूद सीपीआईएम नेता वृंदा करात ने भी सरकार की याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुकदमा वापसी की अर्जी पूरी तरह निराधार थी। उन्होंने कहा कि अदालत ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है और पीड़ित परिवार के साथ न्याय की लड़ाई में आगे भी समर्थन जारी रहेगा।
गौरतलब है कि इस साल अक्टूबर में राज्य सरकार की ओर से अदालत में यह दलील दी गई थी कि मुकदमा वापस लेने से सामाजिक सौहार्द बहाल होगा। इसके लिए शासन और संयुक्त निदेशक अभियोजन के आदेश के बाद सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) ने अदालत में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसे मामले की गंभीरता के अनुरूप नहीं माना।
बिसाहड़ा कांड वर्ष 2015 में सामने आया था, जब एक भीड़ ने कथित आरोपों के बाद अखलाक को पीट-पीटकर मार डाला था। यह मामला देशभर में मॉब लिंचिंग और कानून व्यवस्था को लेकर बहस का केंद्र बना था। अदालत का ताजा फैसला इस केस को निर्णायक दिशा में आगे बढ़ाने वाला माना जा रहा है।





