AIIMS Delhi: ब्रेन स्ट्रोक से मौतों पर बड़ी उम्मीद, स्वदेशी ब्रेन स्टेंट सुपरनोवा का ट्रायल सफल, एम्स ने रचा इतिहास

AIIMS Delhi: ब्रेन स्ट्रोक से मौतों पर बड़ी उम्मीद, स्वदेशी ब्रेन स्टेंट सुपरनोवा का ट्रायल सफल, एम्स ने रचा इतिहास
नई दिल्ली। ब्रेन स्ट्रोक से होने वाली मौतों और स्थायी विकलांगता को रोकने की दिशा में भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए ब्रेन स्टेंट ‘सुपरनोवा’ के सफल क्लीनिकल ट्रायल के बाद भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जो एडवांस स्ट्रोक केयर तकनीक में सक्षम हैं। एम्स दिल्ली के नेतृत्व में किए गए इस ट्रायल को स्ट्रोक के इलाज में एक ऐतिहासिक टर्निंग पॉइंट माना जा रहा है, जिससे हर साल लाखों मरीजों की जान बचाने की उम्मीद जगी है।
एम्स के न्यूरो इमेजिंग एंड इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख और इस ट्रायल के नेशनल प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. शैलेश बी. गायकवाड़ ने बताया कि यह भारत का पहला मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी ट्रायल है, जिसमें दिमाग की बड़ी नसों में जमे खून के थक्कों को निकालने के लिए विशेष ब्रेन स्टेंट का इस्तेमाल किया गया। ‘ग्रासरूट’ नाम से किए गए इस ट्रायल में देश के आठ प्रमुख चिकित्सा केंद्रों पर कुल 32 मरीजों को शामिल किया गया। अगस्त 2024 से जून 2025 के बीच हुए इस अध्ययन के नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे, जिनके प्रारंभिक परिणाम प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ न्यूरो इंटरवेंशनल सर्जरी में प्रकाशित किए गए हैं।
ट्रायल के दौरान मरीजों में ब्लड फ्लो की बहाली के मामले में बेहतरीन परिणाम सामने आए। आंकड़ों के अनुसार, ब्रेन ब्लीड का जोखिम केवल 3.1 प्रतिशत रहा, जबकि मृत्यु दर 9.4 प्रतिशत दर्ज की गई। सबसे अहम बात यह रही कि इलाज के 90 दिनों बाद लगभग 50 प्रतिशत मरीजों में फंक्शनल इंडिपेंडेंस देखी गई, यानी वे अपने रोजमर्रा के काम खुद करने में सक्षम हो गए। विशेषज्ञों का कहना है कि स्ट्रोक जैसे गंभीर रोग में यह सफलता दर भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
डॉ. गायकवाड़ ने बताया कि इस स्वदेशी ब्रेन स्टेंट को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन से मंजूरी भी मिल चुकी है, जिससे इसके व्यापक उपयोग का रास्ता साफ हो गया है। अब विदेशी सहयोग से विकसित इस स्टेंट का उत्पादन भारत में ही किया जाएगा, जिससे इसकी लागत में काफी कमी आएगी। उम्मीद है कि फरवरी से यह स्टेंट आम जनता के लिए किफायती दरों पर उपलब्ध हो जाएगा, जिससे देश के छोटे और मध्यम शहरों में भी स्ट्रोक का उन्नत इलाज संभव हो सकेगा।
इस ट्रायल के ग्लोबल प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर और यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी के प्रोफेसर डॉ. दिलीप यवगल ने बताया कि यह डिवाइस न केवल प्रभावी है बल्कि लागत के लिहाज से भी बेहद सस्ती है। उन्होंने कहा कि दक्षिण-पूर्व एशिया में अब तक इस तकनीक से 300 से अधिक मरीजों का सफल इलाज किया जा चुका है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और उपयोगिता साबित होती है।
भारत में ब्रेन स्ट्रोक एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। हर साल लगभग 17 लाख लोग स्ट्रोक का शिकार होते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में मरीजों की मौत हो जाती है या वे जीवनभर के लिए विकलांग हो जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि समय पर मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी जैसी उन्नत तकनीक उपलब्ध होने से इन आंकड़ों में बड़ी गिरावट लाई जा सकती है।
डॉक्टरों के अनुसार, ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों में अचानक शरीर के एक हिस्से में कमजोरी, बोलने में दिक्कत, चेहरा लटक जाना, देखने में परेशानी या तेज सिरदर्द शामिल हैं। ऐसे लक्षण दिखते ही तुरंत अस्पताल पहुंचना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि पहले 4.5 घंटे के भीतर इलाज मिलने पर मरीज की जान और जीवन की गुणवत्ता दोनों को बचाया जा सकता है। एम्स द्वारा विकसित और परखे गए इस स्वदेशी ब्रेन स्टेंट से देश में स्ट्रोक के इलाज की तस्वीर बदलने की उम्मीद की जा रही है।





